कविता : चाँद और बादल
धुंध की चादर पसारे
धरा के रूप को सभाले
धूप हो गई है गुलाबी
मौसम अंगराई मारे
बादल श्वेत परिधान पहने
चाँद ओट से झाँके
देखता जमीं के नजारे
मुझ पर डोरे डाले
शाम हो जाये जब
जग में चाँदनी बिखेरें
बैठी है जो नव विवाहिता
दर्शन को तेरे
तुझमें ही अपना चाँद पाये
चाँद को भी है पता
प्रिया प्यार को देखेंगी
चाँद मुझमें अपना
तभी तो वो पायेंगी
बैठी है तैयार कर थाल
रोली चंदन कुमकुम
इन्तजार में है
कब आयेगा उसका
प्रिय चॉद
डॉ मधु त्रिवेदी
वाह वाह !