गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

 

धरा   है  घूर्णन  से  त्रस्त,  नभ   विषणन  में  डूबा  है

दशा  पर  जग  की, ये  ब्रह्माण्ड  ही  चिंतन  में डूबा है

हर इक शय  स्वार्थ  में आकंठ  इस  उपवन में डूबी है
कली   सौंदर्य   में   डूबी,  भ्रमर   गुंजन   में   डूबा  है

बयां   होगी   सितम  की  दास्तां,  लेकिन  ज़रा  ठहरो
सुख़नवर   प्रेयसी   के   रूप   के   वर्णन  में   डूबा  है

उदर के आग  की  वो  क्या  जलन  महसूस  कर  पाए
जो  चौबीसों  घड़ी  ही  अनगिनत  व्यंजन  में  डूबा  है

संवारेगा  वो  किस्मत  देश  की,  बस  पेटियां  भर  ले
अभी  कुछ  दिन  हुए  आए, अभी  शोषण में  डूबा  है

न  मतलब  ईश्वर  तुझ  से, न  तुझ  से  वास्ता अल्लाह
ज़माना  सिर्फ आय और व्यय के विश्लेषण में  डूबा है

अधीन   उन्माद  के   उसके   हुए   हैं   चेतन-अवचेतन
जो क्षण भर को भी “जय” मदिरा भरे लोचन में डूबा है
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जयनित कुमार मेहता

जयनित कुमार मेहता

पिता- श्री मनोज कुमार मेहता जन्मतिथि- 06/11/1994 शिक्षा:बी.एन. मंडल विश्वविद्यालय,मधेपुरा(बिहार) से राजनीति शास्त्र में स्नातक (अध्ययनरत) रूचि: साहित्य में गहन रूचि। कविता,गीत, ग़ज़ल लेखन.. फेसबुक पर निरंतर लेखन व ब्लॉगिंग में सक्रिय! प्रकाशित कृतिया: एक साझा काव्य संग्रह 'काव्य-सुगंध' शीघ्र (जनवरी 2016 तक) प्रकाश्य!! पता: ग्राम-लालमोहन नगर,पोस्ट-पहसरा, थाना-रानीगंज, अररिया, बिहार-854312 संपर्क:- मो- 09199869986 ईमेल- [email protected] फेसबुक- facebook.com/jaynitkumar

2 thoughts on “ग़ज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    बढिया !

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    उम्दा गज़ल

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