फॉग ही तो चल रहा है
ये बात मुझे समझ में नहीं आ रही है कि आजकल टीवी पर एक विज्ञापन में ‘क्या चल रहा है’ के जवाब में ‘फॉग चल रहा है’ सुनकर लोग किस सोच में डूब जा रहे हैं? क्या उन्हें नहीं पता कि वास्तव में सर्वत्र फॉग ही चल रहा है। फॉग यानी हिंदी में कुहरा। और कुहरा भी इस कदर छाया है कि मन-मस्तिष्क को दिग्भ्रमित होते ज़रा भी देर नहीं लगती। इस कुहरे की ख़ासियत ये है कि इसने अनपढ़-ज्ञानी, सभ्य-असभ्य, और रक्षक-भक्षक का भेद ही समाप्त कर दिया है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में देशविरोधी नारों के बीच भी सियासी खिचड़ी पकाई जाती है। और बड़ी बेशर्मी से यहाँ तक कहा जाता है कि “देशविरोधी नारे लगाने से किसी को देशद्रोही नहीं माना जा सकता।” तभी से मैं देशद्रोह की परिभाषा ज्ञात करने में लगा हूँ। इससे और भी घना कुहरा हो सकता है क्या?
हैदराबाद विश्वविद्यालय में शोध छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद एक नए तरह के ‘फॉग’ का आविष्कार हुआ है। आलम ये है कि अब कोई हत्या हो या आत्महत्या सबसे पहले मरने वाले की जाति मालूम की जाती है। अगर वो दलित हुआ तो सोने पे सुहागा, अगर नहीं भी हुआ तो उसे दलित साबित करने की पुरज़ोर कोशिश की जाती है, ताकि घड़ियाली आंसू दिखाकर, उनकी सहानुभूति प्राप्त कर उनके वोट-बैंक पर कब्ज़ा जमाया जा सके।
एक तरफ आरक्षण का कुहरा है, जिसने पिछले दिनों अमानवीयता की सारी हदें पार कर दीं। पिछले साल गुजरात में पटेल समुदाय के बाद अब इस साल हरियाणा में जाट आन्दोलन आवश्यकता से अधिक उग्र रहा, जिसमें निजी और सरकारी संपत्ति समेत हज़ारों करोड़ का नुक्सान हुआ। लगभग दो सौ व्यक्ति घायल हुए और 30 से अधिक जानें भी गईं। इसी बीच आरक्षण को ख़त्म करने और न करने पर बहस जारी है। ये कुहरा सबसे अधिक घना है अभी।
दूसरी तरफ सतारूढ़ पार्टी और विपक्षी पार्टी के नेता देशहित को ‘वेटिंग-लिस्ट’ में डालकर पहले अपने मुँह की खुजली मिटाने में लगे हैं। पब्लिक के पास न ‘सेंस’ है, न आँख न कान, तभी तो वे अपने तरकश से धड़ाधड़ एक दूसरे पर व्यंग्य बाण छोड़े जा रहे हैं। जनता को बुद्धि कहाँ है? जो ये कहेंगे, वही तो मानेगी जनता। अचानक से फलाने पार्टी के वरिष्ठ नेताजी का बयान आता है कि चिलानी पार्टी के नेता देश को बांटने में लगे हुए हैं, कभी- देशद्रोहियों का समर्थन कर रहे हैं।
संसद में 12वीं पास मंत्री के अकाट्य तर्कों से आहत होकर पीठ पीछे उनके अतीत के गड़े मुर्दे उखाड़े जाते हैं। उनकी शैक्षणिक योग्यता का हवाला दिया जाता है। मंत्री बनने से पहले तक का तुलनात्मक अध्ययन कर दिल को तसल्ली दी जाती है कि मंत्री होने से पहले वो महज एक मामूली सी मॉडल और छोटी-मोटी रोल करने वाली एक्ट्रेस रही हैं। और तो और, उन्हें मंत्री पद मिलने के पीछे उनके और प्रधानमंत्री मोदी के किन्हीं रहस्यमयी संबंधो का योगदान माना गया।
इधर, अपने बिहार में जबसे महागठबंधन की सरकार बनी है, लगता है सारे अपराधियों के हाथ बंधनमुक्त हो गए हैं। यह केवल एक संयोग नहीं है कि “महागठबंधन” के बाद आपराधिक गतिविधियों में अविश्वसनीय तेजी आई है। मगर नितीश कुमार सच्चाई स्वीकारने को तैयार ही नहीं हैं। बल्कि कहते हैं कि- “किस राज्य में अपराध नहीं होते? हम अपराध रोकने का प्रयास कर सकते हैं, दावा कैसे किया जा सकता है? वैसे भी हमारा बिहार अभी क्राइम के मामले में 12वें नंबर पर है देश में।” अर्थात, माननीय मुख्यमंत्री जी का तात्पर्य ये है कि जब तक बिहार क्राइम में नंबर 1 नहीं हो जाता, तब तक चिंता करने की कोई बात नहीं है।
श्रीमान लालू प्रसाद यादव जी कहते हैं कि अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा को जड़ से उखाड़ फेंकना है। हे यादव जी! मेरा तो आपसे यही निवेदन होगा कि पहले आप अपना घर बसाने में कामयाब हो जाएँ, फिर किसी का उजाड़ने की सोचियेगा। अभी तो आपने ‘छोटा मुँह बड़ी बात’ कह दी। राजनीति में जिस जमीन पर पैर टिका हो, वो जमीन कब खिसक जाए कोई नहीं जानता। तो आपलोग ज़रा जनता की सेवा पर ध्यान दीजिये, “मेवा” पर नहीं। और कम-से-कम बिहार में फैले इस राजनीतिक, आपराधिक कोहरे के छंटने का उपाय कीजिये। वर्ना, अगली बार किसी ने हमसे पूछ लिया, “क्या चल रहा है”, तो मजबूरन हमें भी कहना पड़ेगा- “फॉग ही तो चल रहा है।”
— जयनित
अच्छा लेख !