शुक्रवार,चित्र,अभिव्यक्ति-आयोजन
आप सभी के सम्मान में प्रस्तुत है एक मुक्तक…….
उखाड़ों मत मुझे फेकों, अरे मैं रेल की पटरी
न गुस्सा आग बरसाओ, उठाती हूँ तेरी गठरी।
जरा सोचो निहारो देख लो मंजिल कहाँ जाती
मंजिल मैं मिला देती, बिना पहचान की ठठरी॥
महातम मिश्र
अति सुंदर.
बहुत बढ़िया प्रतिक्रिया !
सादर धन्यवाद आदरणीय विजय सर जी, हार्दिक आभार