मैं नारी हूँ
मैं नारी हूँ मैं नारी हूँ,……………कलियुग से मैं हारी हूँ
कौन समझता अब मुझको, किस पद की अधिकारी हूँ
बनी पिता की मुश्किल मैं अब, जग समझे बेचारी हूँ
हुई पुत्र की मैं मजबूरी,…………….पुत्री की लाचारी हूँ
हूँ मैं ही झांसी की रानी,………….मैं ही यशोदा माई हूँ
सरस्वती मैं सुर की देवी, …………मैं ही तीजन बाई हूँ
भला भूल क्यों तुम हो जाते,. …क्यों इतना इतराते हो
पैदा करती हूँ मैं तुमको, ……क्या तुम फ़र्ज़ निभाते हो
जननी हूँ इस जग की लेकिन, अब अपमानित होती हूँ
अपनों के ही हाथो से अब, …लाज भी अपनी खोती हूँ
बेटी बन टुकड़े होती हूँ, ……….माँ बन चिथड़े होती हूँ
नारी होकर भोग बनी हूँ,…………हर झगड़े में होती हूँ
अपना दूध पिलाती हूँ मैं ,…..फिर जीना सिखलाती हूँ
नव जीवन की डोर पकड़कर,..सपने भी दिखलाती हूँ
ममता का सागर है मुझमें,…….तब ही माँ कहलाती हूँ
कर्ज़ भला क्या तारोगे,………..अपना खून जलाती हूँ
— गंगा गैड़ा
सार्थक लेखन
उम्दा रचना
उम्दा रचना