“कुंडलिया”
मन कहता काला करूँ, काले धन की बात
पर कितना काला करूँ, किससे किससे घात
किससे किससे घात, कहाँ छूपाऊँ बाला
हर महफिल की शान, सराहूँ कैसे हाला
कह गौतम कविराय, कलंकित है काला धन
जल्दी करों उपाय, नहीं तो मरता है मन॥
महातम मिश्र, गौतम
मन कहता काला करूँ, काले धन की बात
पर कितना काला करूँ, किससे किससे घात
किससे किससे घात, कहाँ छूपाऊँ बाला
हर महफिल की शान, सराहूँ कैसे हाला
कह गौतम कविराय, कलंकित है काला धन
जल्दी करों उपाय, नहीं तो मरता है मन॥
महातम मिश्र, गौतम