“स्तुति”
दशरथ नन्दन अवध बिहारी, आय गए प्रभु लंका जारी
धन्य धन्य है मातु कोसल्या, सीता सहित आरती उतारी॥
कोशल कवन भांति दुलराऊँ, हनुमत हिय सिय ढिग बैठारी
लहेऊ लखन कर चूमत माथा, साधि पुरावति सब महतारी॥
भरत भूआल सत्रुघ्न लखि लखि, चारिहु ललन वारि ले वारी
सरयू तट माँ महा आरती, मिलही प्रजा प्रभु दरश निहारी॥
चौदह वर्ष निमिष मह बीता, मानहुं सुरसरि रघुवर वारी
नवमी राम अवध पुनि आवा, शीतल भई पुलक फुलवारी॥
माँ जननी जग जय जगदम्बे, करहूँ अनुग्रह सब पर भारी
हे करुणाकर निज संतन को, देहु सुबुद्धि जन कष्ट निवारी॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी