मुक्तक
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खिली खिली सी सुबह सुहानी हसीन सपने जगा गई है
हमारी पलकों पे आके चुपके से ख्वाब कोई सजा गई है
नई सुबह के नए तराने सुना रही है हवा दीवानी
कि भरना पंखों में हौसलों की उड़ान हमको सिखा गई है
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वफा की बातें वफ़ा के किस्से,तुम्हें मुबारक ये सारी बातें
हमारे हिस्से में बेवफाई, मिली कयामत की काली रातें
पिघल रही है तुम्हारीं यादें हमारी आँखों से अश्क बनकर
कि रौशनी के हसीं नजारें हमारा दिल अब नहीं लुभातें
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तुम्हे ही चाहा तुम्हे ही पूजा, खुदा तुम्ही को बना लिया है
तुम्हारे ख्वाबो को हमने पलकों पे आज अपनी सजा लिया है
बिना तुम्हारे नहीं है जीना, किया है हमने ये आज वादा
तुम्हे ख्यालों में ढालकर यूँ ग़ज़ल बना गुनगुना लिया है
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नशे में जिसके मैं जिन्दगी के भुला दूँ गम वो शराब देना
वफ़ा निभाई है मैंने अब तक, न बेवफा का खिताब देना
नहीं सितारों की आरजू है नहीं तमन्ना है चांदनी की
जो उठ रहे हैं सवाल दिल में, जरा सा उनका जवाब देना
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रमा प्रवीर वर्मा
नागपुर (महाराष्ट्र)