यज्ञ से वर्षा होती है
ओ३म्
वेद ईश्वरीय ज्ञान है जो ईश्वर ने सृष्टि की आदि में चार ऋषियों अग्नि, वायु आदित्य व अंगिरा को दिया था। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अर्थवेद मुख्यतः ज्ञान, कर्म, उपासना तथा विज्ञान पर आधारित ज्ञान की पुस्तकें हैं। ऋग्वेद का मन्त्र संख्या 4/58/9 निम्न हैः
यत्र सोमः सूयते यत्र यज्ञो घृतस्य धारा अभि तत् पवन्ते।।
(यत्र) जहां (सोमः) सोम (सूयते) अभिषिक्त किया जाता है, अर्थात् सोम को कूट कर उसका रस निकाला जाता है (यत्र) जहां (यज्ञः) यज्ञ किया जाता है (तत्) उस स्थान को (घृतस्य) जल की (धाराः) धाराएं (अभि पवन्ते) पवित्र करती हैं।
सृष्टि के आदि काल से आर्य जाति का यह मन्तव्य है कि यज्ञ करने से जहां रोगादि की निवृत्ति होती है, वहां सब से बड़ा लाभ यह है कि उसके द्वारा यथोचित काल में वृष्टि हाती है, अर्थात् यज्ञ से अनावृष्टि का नाश होता है, दूषित पर्यावरण की शुद्धि होती है। इस प्रकार यज्ञ के द्वारा समस्त प्राणि-मात्र का कल्याण होता है। क्योंकि सब प्राणियों का जीवन जल के ऊपर निर्भर है। अतएव जल का एक वैदिक नाम ‘‘जीवन” भी है। मनु जी ने कहा है–
अग्नौ प्रास्ताहुतिः सम्यगादित्यमुपतिष्ठते आदित्याज्जायते वृष्टिर्वृष्टेरन्नं ततः प्रजाः।।
अर्थात् अग्नि में डाली हुई आहुति आदित्य (द्युलोक) को प्राप्त होती है और उससे वृष्टि होती है। वर्षा से सब प्राणियों की उत्पत्ति होती है। यही गीता में भी कहा है–यज्ञाद् भवति पर्जन्यः पर्जन्याद् वृष्टिसम्भवतः। अर्थात् यज्ञ करने से बादल बनते हैं और उनसे वृष्टि वा वर्षा होती है।
अतः सृष्टि के प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि वह नित्य नैमित्तिक यज्ञों को श्रद्धापूर्वक नियम से करे।
आजकल लातूर सहित देश के अनेक भागों में भीषण सूखा पड़ा है। लोग जल की एक एक बूंद के लिए तरह रहे हैं। देश की सरकार द्वारा लोगों की मुसीबतें दूर करने के लिए रेल के टेंकरों में पानी भर कर सूखे से प्रभावित स्थानों को भेजी जा रही है। ऐसे में यदि सूखे से प्रभावित स्थान में बड़ी मात्रा में वैदिक विधि से वेदों के ज्ञानी आर्य पण्डित वृहत् यज्ञ करें तो इससे वर्षा की पूर्ति सहित पर्यावरण को भी लाभ होगा। हम सम्बन्धित पक्षों का इस ओर ध्यान दिलाना चाहते हैं।
हमने यह संक्षिप्त लेख वेदवाणी के मार्च, 1982 में प्रकाशित लेख के आधार पर तैयार किया है। पत्रिका के तत्कालीन सम्पादक पं. युधिष्ठिर मीमांसक जी और प्रकाशकों का हम आभार व्यक्त करते हैं।
-मनमोहन कुमार आर्य
प्रिय मनमोहन भाई जी, ऋग्वेद के मन्त्र-
यत्र सोमः सूयते यत्र यज्ञो घृतस्य धारा अभि तत् पवन्ते.
की समीक्षा जानकर ज्ञान में अभिवृद्धि हुई. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है, कि यज्ञ से वर्षा होती है. हमने ऐसा होते हुए देखा भी है. एक सार्थक आलेख के लिए आभार.
नमस्ते आदरणीय बहिन जी. लेख पसंद आया और आपने अपने अनुभव से वेद की बात की पुष्टि की, एतदर्थ हार्दिक धन्यवाद। सादर।