कविता कविता : देह मीनाक्षी भालेराव 26/04/201623/04/2016 देह उसकी देह आज चुपचाप पड़ी थी म्रत बिना कम्पन के मार कर अपने मन को जब मुर्दा सी पड़ी रहती थी तब कोई नहीं आया रोने को देह निष्क्रीय देह सब कोई धहाड़े मार मार कर दुखी होने का स्वांग । क्यो ?