गीतिका
फूल के साथ क्यूँ मिल रहा खार है ।
जीतना चाहता मिल रही हार है ।
मोल रिश्तों का होने लगा आजकल
जिंदगी हो गई एक बाजार है ।
सोच कर ये सदा दिन गुजारो यहाँ
जिंदगी में सदा दिन बचे चार है ।
वक्त पर साथ कोई निभाता नही
दोसतो की भले आज भरमार है ।
दर्द सह के सदा मुस्कुराता रहा
धर्म की जिन्दगी का यही सार है ।
— धर्म पाण्डेय