गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

 

फूल के साथ क्यूँ मिल रहा खार है ।
जीतना चाहता मिल रही हार है ।

मोल रिश्तों का होने लगा आजकल
जिंदगी हो गई एक बाजार है ।

सोच कर ये सदा दिन गुजारो यहाँ
जिंदगी में सदा दिन बचे चार है ।

वक्त पर साथ कोई निभाता नही
दोसतो की भले आज भरमार है ।

दर्द सह के सदा मुस्कुराता रहा
धर्म की जिन्दगी का यही सार है ।

— धर्म पाण्डेय