गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

 

प्यार की राहों में जब पागल दिवाना आ गया ।
हाथ में पत्थर लिये सारा जमाना आ गया

सख्त राहो पर बहुत आसान सा लगता सफर ।
हौशला मजबूत कर मंजिल को पाना आ गया ।

जिंदगी की मुश्किले मुझको रुलाती अब नही
दर्द में भी मुस्कुरा कर गम छुपाना आ गया ।

प्यार की राहों में अब होते रहेगे हादिसे
बेवफा को तीर नजरों से चलाना आ गया ।

बस तलाशे यार में भटका हूँ सारी उम्र मैं
जिंदगी का अब मेरे अंतिम ठिकाना आ गया ।

तीरगी छटने लगी है खुद ब खुद घर से मेरे
धर्म आंधी में चरागों को जलाना आ गया।

— धर्म पाण्डेय