नन्हे-श्रम-स्वेद-बिन्दु
मेरे इन बालअश्रुओं में
मेरे नन्हे-श्रम-स्वेद-बिन्दु
भी मिले हुए हैं ।
मेरा बचपन नहीं जानता
मेरे हाथों को ये काम
कब से मिले हुए हैं ।
माँ के बाद शायद मैंने
श्रम को ही जाना है या कि
हम दोनों साथ पैदा हुए हैं ।
कुछ लोग मुझे काम करता देख
तरस खाते हैं ।
कुछ आँखों से जल बरसाते हैं ।
मेरा बचपन समझ नहीं पाता है
क्यों वो लोग ऐसा दर्शाते हैं ।
माँ मेरे हाथों को रात में
अपने हाथों में ले
जाने क्यों घण्टों रोती है ।
शायद ही है कि वह कभी सोती है ।
सुबह हम दोनों साथ थोड़ा खाकर
निकल जाते हैं ।
माँ बहुत करती है कुछ हम भी
कर पाते हैं ।
साथ देर शाम हम थके पक्षी से
घौंसले से अपने घर में लौट आते हैं ।
दरवाजे पर ही सिर्फ रात को दिखने वाले
मेरे पिता हमसे मजदूरी छीन
कहीं दूर चले जाते हैं ।
मेरा बचपन मेरी माँ की गोद में
कभी भूखा तो कभी कुछ थोड़ा खाकर
सो जाता है ।
मेरा बचपन आज तक भी नहीं जान पाया है
माँ खाती है या सोती है कभी कि नहीं
साथ उठकर उसके मेरा बचपन
सुबह फिर चल देता है ।
माँ हर रोज मुझे कहती है
उसने मेरे लिए
कोई सपना देखा है ।
— डॉ. शुभ्रता मिश्रा