माँ
माँ
तेरी कोख में मैंने जनम लिया
मेरा भाग्य निखर के आया माँ
तेरे ही आंचल में मेरा
सारा ब्रह्माण्ड समाया माँ
हर वक्त रहे आशीष तेरा
रहे तेरी गोद का साया माँ
मैं धन्य हुई हाँ धन्य हुई
जो तुझको मैंने पाया माँ
अपनी ममता की दौलत को
तूने हम पर सदा लुटाया माँ
तेरे चरण तले सारे तीरथ
और चारों धाम को पाया माँ
तेरे रोम रोम में है सारे
वेदों का सार समाया माँ
मैं धन्य हुई हाँ धन्य हुई
जो तुझको मैंने पाया माँ
तेरे साथ जुड़ा जो ये रिश्ता
सबसे अनमोल कहाया माँ
पाकर पावन सानिध्य तेरा
मेरा जीवन मुस्काया माँ
तेरे दूध का मोल भी तो मुझसे
कभी गया नहीं है चुकाया माँ
मैं धन्य हुई हाँ धन्य हुई
जो तुझको मैंने पाया माँ
तेरा स्नेहिल करुण हृदय मैंने
ईश्वर सदृश्य ही पाया माँ
दिल से निकला आशीष तेरा
ईश्वर भी टाल न पाया माँ
जो तुझे कभी अपना न सका
वो सबसे हुआ पराया माँ
मैं धन्य हुई हाँ धन्य हुई
जो तुझको मैंने पाया माँ ||
— पूनम पाठक “पलक”
सुन्दर रचना!!
सुन्दर रचना!!
आभारी हूँ रमेश जी
वाह वाह बहुत खूब पूनम जी।
हार्दिक धन्यवाद महेश ji