मुक्ति का आधार सत्यार्थ प्रकाश का अध्ययनः आशीष दर्शनाचार्य
ओ३म्
–वैदिक साधन आश्रम तपोवन का दूसरे दिन का रात्रिकालीन सत्र-
वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के ग्रीष्मोत्सव के दूसरे दिन 12 मई, 2016 को रात्रिकालीन सत्र में डा. कैलाश कर्मठ जी के भजन और आचार्य आशीष दर्शनाचार्य जी का प्रवचन हुआ। भजनों का आरम्भ किसी कविता की पंक्तियों ‘हे प्रभु तेरी शरण में हम सदा आते रहे। गीत तेरे प्रेम के हम सदा गाते रहे।।‘ से किया। पहले भजन की पंक्तियां थी ‘काम आयेगा प्रभु का भजन, जिसने दिया है मुझे प्यारा मानव जन्म। तू करले उसका भजन।’ दूसरा भजन आरम्भ करने से पूर्व गीत गायक ने कहा कि जीवन में दो ही चीजें हैं सत्संग और कुसंग। कुसंग में तो सभी रहते हैं। यथार्थ संत्सग मनुष्य को ईश्वर की कृपा से उसके प्रारब्ध के अनुसार प्राप्त होता है। इसके बाद दूसरा भजन हुआ जिसके आरम्भिक शब्द थे ‘जीवन बीत रहा पल पल, किसे पता है कौन जगेगा, आने वाले कल में। महाकाल विकराल खड़ा है अपना फन्दा डाल खड़ा है। कोई बचा न कोई बचेगा इसकी मची हुई है हलचल।’ रोचक, मधुर एवं श्रोताओं के मन को प्रभावित करने वाले भजनोपदेश डा. कैलाश कर्मठ जी ने तीसरा भजन ‘इतने पतन के बाद भी, आज भी जग सारा, कहता है भारत प्यारा।’ प्रस्तुत किया। कर्मठ जी के बाद आर्यसमाज के प्रतिष्ठित विद्वान आचार्य आशीष दर्शनाचार्य का प्रवचन हुआ। उन्होंने कहा कि हमारा यह वर्तमान समय ही मुक्ति का द्वार है। जिसको अपने वर्तमान में जीने की कला ज्ञात हो जाती है उसे ईश्वर वा सत्य का साक्षात्कार वर्तमान में की गई साधनाओं द्वारा ही होता है। हमें वर्तमान में ही ध्यान की सही विधि प्रकट होती है। परमात्मा तीनों कालों में सर्वत्र व्यापक एवं विद्यमान है। उसका अनुभव तभी सम्भव होगा जब हम अपने मन के साथ वर्तमान काल में ध्यान द्वारा परमात्मा का अनुभव करने का प्रयास करें। हमें अपने जीवन में वर्तमान का स्वागत करना सीखना है।
विद्वान वक्ता ने कहा कि यदि हमें शारीरिक कष्ट हो तो क्या हम अपने शरीर के कष्ट के साथ अपने मन में भी कष्ट पैदा करें। इससे तो कष्ट बढ़ जायेगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान में अपने आपको सहज व शान्त रखना तथा अपने मन को विचलित न होने का अभ्यास ही साधना है। दुःखों से छूटना मनुष्य की कल्पना में नहीं वर्तमान में होना चाहिये। दुःख से छूटने के लिए हमें अपने वर्तमान में ही अपने मन को संकल्पित रखना होगा कि मुझे किसी समस्या से परेशान नहीं होना है। साधना पलायन वा भागने का रास्ता नहीं है। साधना तो समस्या की चुनौती को स्वीकार कर मन को शान्त बनाये रखने का नाम है। यह ध्यान रखना चाहिये कि वर्तमान के प्रति सजगता अनिवार्य है। भविष्य की योजना बनाते समय हमारे मन में किसी प्रकार की चिन्ता न आये, यह सजगता रखनी होगी। शारीरिक व मानसिक प्रयोगों के द्वारा आने वाले दुःखों को तोड़ा जा सकता है। आस्तिक होने पर भी भारत भ्रष्टाचार में विश्व के देशों में अग्रणीय स्थान पर है। प्रश्न उठता कि यह विरोधाभास क्यों है। धर्म का आचरण करने वाले व्यक्ति को भी विपरीत परिस्थितियों में भ्रष्टाचार का सहारा लेना पड़ता है। विद्वान वक्ता ने इससे संबंधित अनेक उदाहरण दिये जिसमें से एक यह था कि रेलवे का कनफर्म टिकट न मिलने पर हम अधीर हो उठते हैं और रेलवे के टिकट अधिकारी को रिश्वत देते हैं जिससे कि हमारी यात्रा सुविधापूर्वक हो सके। उन्होंने पूछा कि क्या हम अनारक्षित श्रेणी में अन्य लोगों के साथ यात्रा नहीं कर सकते? अन्य अनेक साधन है जिससे यात्रा की जा सकती है। शारीरिक कष्ट से बचने के लिए व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को भ्रष्ट करने का प्रयत्न करता है। उन्होंने स्वामी दयानन्द के प्रिय वेद मन्त्र ओ३म् विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव की चर्चा की। यह मन्त्र मनुष्य को मुक्ति से जोड़ता है। इस मन्त्र में प्रार्थना है कि जो भद्र है वह हमें प्राप्त कराईये। मन्त्र में भद्र की प्राप्ति दुःखों से मुक्ति वा मोक्ष का संकेत कर रहा है। विद्वान वक्ता ने कहा कि महर्षि दयानन्द ने शुद्ध ज्ञान को समाज में स्थापित करने का कार्य किया।
श्री आशीष दर्शनाचार्य जी ने कहा कि परिवर्तन, गतिशीलता, अनुकूलता व प्रतिकूलता, उतार चढ़ाव आदि का नाम ही संसार है। यह सब बातें हमारे जीवन में होनी ही होनी है। विद्वान वक्ता ने सावधान किया कि हमारी प्रार्थना इस बात पर केन्द्रित नहीं होनी चाहिये कि हमारे जीवन में संकट न आयें। क्योंकि यह तो आने अवश्यम्भावी है। हम कितने भी सकारात्मक क्यों न हो हम दुःखों से बच नहीं सकते। शराबी ड्राइवर व लोभी डाक्टर आदि हमारे लिए संकट का कारण बन सकते हैं। हमारे जीवन में आने वाले सभी कष्ट वा दुःख हमारे कर्मों का फल नहीं होते। दूसरे बुरी प्रवृत्ति के लोगों के कारण भी हमें अनायास दुःख मिल सकता है। श्री आशीष जी ने कहा कि हमारा फोकस इस बात पर रहता है कि हमारे जीवन में कोई समस्या न आये। हर विपरीत व अनुकूल परिस्थिति में मैं पूर्ण शान्त रहकर ईश्वर की उपासना कर सकूं, यही प्रार्थना हमें ईश्वर से करनी चाहिये। हमें इन्ही व इसी प्रकार के विचारों में अपने जीवन को ढालना चाहिये। प्रतिकूल परिस्थितियां आने पर कई बार कई मनुष्यों का ईश्वर पर विश्वास डगमगा जाता है व कुछ का समाप्त भी हो सकता है। विद्वान वक्ता ने विश्लेषण कर कहा कि जितना मनुष्य का निर्माण प्रतिकूल परिस्थितियों में होता है उतना अनुकूल परिस्थिति में रहने वाले मनुष्यों का नहीं होता। जीवन में आने वाली प्रतिकूलतायें और उसके प्रति हमारा संघर्ष भी कई बार उन्नति का एक सोपान बन जाता है। विद्वान आचार्य जी ने कहा कि जीवन में ईश्वर को वही मनुष्य अनुभव कर सकता है जो भयमुक्त हो।
श्री आशीष आर्य जी ने कहा कि जिस दिन आप भयमुक्त हो जायेंगे उस दिन आप मुक्ति के निकट पहुंच जायेंगे। उन्होंने कहा कि ऋषियों की परम्परा ही हमारे इन दुःखों व जीवन से मुक्ति का स्रोत है। यह स्रोत हमें महर्षि दयानन्द के ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश को पढ़ने व समझने से मिलता है। जो व्यक्ति सत्यार्थ प्रकाश नहीं पढ़ता अथवा इसकी आलोचना करता है वह अपनी ही हानि करता है। वैदिक विद्वान आशीष जी ने कहा कि सत्यार्थ प्रकाश के अध्ययन को जीवन में कभी मत छोड़ियेगा। उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश का अध्ययन करने के लिए समय समय पर वैदिक साधन आश्रम तपोवन में लगने वाले शिविर में भाग लेने के लिए सभी को निमंत्रण दिया।
यह भी निवेदन करना है कि कल रात्रि हमने इस कार्यक्रम को देखा व सुना और जो कुछ थोड़ा सा नोट कर सकें, उसे आपसे साझा कर रहे हैं। इसमें हमारी अल्पज्ञता संबंधी कुछ व अनेक त्रुटियां भी हो सकती है जिसके लिए है क्षमा प्रार्थी हैं परन्तु हमनें पूरी सद्भावना से इसे तैयार करने का प्रयास किया। यदि किसी पाठक को भी यह अच्छा लगता है तो हम अपने श्रम को सफल समझेंगे।
–मनमोहन कुमार आर्य
मनमोहन भाई , लेख अच्छा लगा , वर्तमान में ही अपने आप को अछे बनना होगा ,भविष्य अपने आप सुधर जाएगा .
नमस्ते एवं धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमैल सिंह जी। चर्चा एवं विश्लेषण करने पर पाया गया है कि वेदों वा शास्त्रों के ज्ञान के बिना मनुष्य सच्चा धार्मिक नहीं बन सकता। हमारे पास आदर्श मनुष्य का उदहारण “दयानन्द” ही है। पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी, स्वामी श्रद्धानन्द, पंडित लेखराम और स्वामी दर्शनानन्द जी सहित कुछ अन्य महापुरुष भी इस प्रकार की दूसरी उच्च श्रेणी में आते हैं। हमारा लक्ष्य दयानन्द बनना है। परन्तु हम भी द्वन्दों में फसें होने के कारण जानते हुवे भी कुछ नहीं बन पा रहें हैं। सादर।
प्रिय मनमोहन भाई जी, आपका श्रम सर्वथा सफल हुआ. हमने बहुत अच्छी-अच्छी बातें सीखीं. हमारा यह वर्तमान समय ही मुक्ति का द्वार है. वर्तमान में अपने आपको सहज व शान्त रखना तथा अपने मन को विचलित न होने का अभ्यास ही साधना है. जीवन में आने वाली प्रतिकूलतायें और उसके प्रति हमारा संघर्ष भी कई बार उन्नति का एक सोपान बन जाता है. अत्यंत सुखद व शांतिदायक आलेख के लिए आभार.
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय बहिन जी। आपने जो शब्द लिखें हैं उससे अच्छी प्रतिक्रिया नहीं हो सकती। आपकी प्रतिक्रिया सटीक एवं युक्तियुक्त है। सादर धन्यवाद।