प्राणवान दुर्गा
स्कूल के प्रांगण में ही कोलकत्ता से कलाकार आते थे माँ दुर्गा की मूर्ति बनाने| सब बच्चें चोरी-छिपे बड़े गौर से देखते माँ को बनते| ऋचा को तो उसकी कक्षा के बच्चे खूब चिढ़ाते रहते|
“देखो तिरेक्षे नयन बिल्कुल ऋचा की तरह है |” सुमी बोली
“और क्रोध भी बिल्कुल माँ के रूप की तरह इसमें भी झलक रहा है|” रूचि बोली
“हा करती हूँ क्रोध और माँ दुर्गा की तरह ही दुष्टों का नाश कर दूंगी|” चिढ़ के ऋचा बोली
“अब तुम सब चुप रहती हो या जाके टीचर से शिकायत करूँ सब की|” तमतमाते हुय बोली ऋचा
“यार चुप हो जा, जानती है न यह टीचरों से भी कहा डरती हैं, जाके शिकायत कर देगी, फिर मार पड़ेगी हम सब को|”
“हाँ यार ये कलाकार तो बेजान माँ दुर्गा की मूर्ति गढ़ रहा है पर प्रभु ने तो चौदह साल पहले यह प्राणवान दुर्गा गढ़ भेज दी थी|” सुमी बोली
“वैसे भी यहाँ मूर्ति पास आना मना भी है, पता चलते ही घर पर शिकायत पहुँच जायेगी|” रूचि के कहते ही सब वहां से भाग ली|
— सविता मिश्रा