कविता

“पानी”

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नौजवान यह भारत देशा, पुनि कांहे को भरा कलेशा
धरती मांगे अंबर पानी, झूम रहें हैं राज नरेशा॥
कौतुक लागे देख विचारा, बाँधी डोर है खिचत धारा
असहाय हुआ काहें मानव, अवनि न आवत एकहि तारा॥
जल गागर भरि भरि कित लाऊं, होठ लगाऊँ आस बुझाऊँ
खींचू गाड़ी जलबिन जीवन, को विधि मन सागर छलकाऊँ॥
तरस मिटाऊँ कैस किसकी, बन बागों में आग लगी है
दूर दूर तक बरखा नाही, गरमी उमस अपार चढ़ी है॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

 

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ

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