सामाजिक

‘स्वामी दयानन्द और आर्यसमाज के अनुयायी यशस्वी स्वामी इन्द्रवेश’ –

ओ३म्

पुण्य तिथि 12 जून पर

 

स्वामी इन्द्रवेश (1937-2006) आर्यसमाज के विख्यात विद्वान, संन्यासी एवं जुझारु नेता थे। आपने अपना सारा जीवन महर्षि दयानन्द की वैदिक विचारधारा के प्रचार व प्रसार में समर्पित किया। 12 जून, 2016 को उनकी दशवीं पुण्य तिथि के अवसर पर हम अपनी सीमित जानकारी के आधार पर यह लेख लिख रहे हैं। आर्यसमाज के कार्यकर्ता, विद्वान, नेता होने के साथ स्वामी इन्द्रवेश जी रोहतक से सांसद भी रहे। युवकों के निर्माण एवं शिक्षा के क्षेत्र में आपने स्मरणीय कार्य किया। आपका जन्म रोहतक-हरयाणा के सुन्दाना ग्राम में ढाका गोत्र में सन् 1937 में हुआ था। आप बचपन में ही महर्षि दयानन्द और आर्यसमाज की विचारधारा से प्रभावित होकर आर्यसमाज में सक्रिय हुए थे। आपने गुरुकुल झज्जर में स्वामी ओमानन्द सरस्वती जी से वैदिक आर्ष शिक्षा का अध्ययन किया था। अध्ययन पूरा कर लेने पर आपने गुरुकुल झज्जर में पढ़ाया भी था।

 

स्वामी इन्द्रवेश जी आर्य प्रतिनिधि सभा हरयाणा के प्रधान रहे। हमने उन पर उपलब्ध सामग्री में पढ़ा है कि आपने आजादी के लिए भी काम किया था। आपका जन्म सन् 1937 में होने के कारण ऐसा हो सकता है कि आप सन् 1947 में देश की आजादी से कुछ पहले स्वतन्त्रता आन्दोलन में रूचि लेने लगे हों। आपने सन् 1950 में ही गुरुकुल झज्जर को अपनी गतिविधियों का केन्द्र बनाया था। झज्जर को अपनी गतिविधियों का केन्द्र बनाने का प्रमुख कारण यह था कि झज्जर आर्थिक दृष्टि से बहुत पिछड़ा हुआ था। स्वामीजी पर नैट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार स्वामी जी ने असाक्षरता, अशिक्षा और अन्धविश्वासों को दूर करने का अभियान भी चलाया और इसके साथ ही सामाजिक असमानता के विरुद्ध भी कार्य किया। हरयाणा में आपने जन जागरण का महत्वपूर्ण कार्य किया। आपको 14 भाषाओं का ज्ञान था और आपने अनेक विषयों पर लेखन कार्य किया।

 

स्वामी इन्द्रवेश जी ने 25 मार्च सन् 1970 को स्वामी अग्निवेश जी और स्वामी आदित्यवेश जी के साथ दयानन्द मठ, रोहतक में आर्य समाज के महान विद्वान व नेता स्वामी ओमानन्द सरस्वती जी से संन्यास लिया था। आपने सन् 1970 में ही हरयाणा में एक राजनैतिक दल ‘‘आर्य सभा” की स्थापना में भी अपना योगदान दिया था। सन् 1973 में आपने किसानों के हितों के लिए एक आन्दोलन का नेतृत्व किया जिसका उद्देश्य किसानों को उनके उत्पादों के उचित मूल्य दिलाना था।

 

सन् 1970 में आपने राष्ट्रिय नेता श्री जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चल रहे विभिन्न दलों के आपातकाल विरोधी जन आन्दोलन का हरयाणा में नेतृत्व भी किया था। इमरजेन्सी के दिनों में आपको कारावास में रखा गया। इसके बाद सन् 1980 में आपका जनता पार्टी से मोह भंग हो गया और आप चैधरी चरण सिंह जी के नेतृत्व वाले लोकदल का सदस्य बने। आपने इसी लोक दल के प्रत्याशी के रुप में रोहतक संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव लड़ा और सांसद चुने गये। सन् 1998 में आपने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता प्राप्त की और रोहतक से ही लोकसभा के प्रत्याशी बने परन्तु चुनाव हार गये। इसके बाद आप आर्य प्रतिनिधि सभा हरयाणा के प्रधान निर्वाचित हुए। 12 जून सन् 2006 को 69 वर्ष की आयु में आपकी मृत्यु हुई।

 

3 जून, 2016 को हमने देहरादून में आर्य विद्वान पं. धर्मपाल शास्त्री जी से स्वामी इन्द्रवेश जी के विषय में जानकारी प्राप्त की। उनसे प्राप्त जानकारी के अनुसार स्वामी इन्द्रवेश जी का स्वभाव मृदुल था। वह वैदिक वांग्मय के उच्च कोटि के विद्वान थे। स्वामी जी का यह भी एक प्रमुख गुण था कि वह अपने से शत्रुता रखने वाले व्यक्तियों के प्रति कभी गलत शब्दों का प्रयोग नहीं करते थे। अपने मित्रों व सहयोगियों को कहते थे कि सब ठीक हो जायेगा। आपने रोहतक को अपनी गतिविधियों का केन्द्र बनाया था।

 

हमें अनेक बार आर्यसमाज के कार्यक्रमों में स्वामी इन्द्रवेश जी के दर्शन करने, उनके प्रवचन सुनने और कुछ आर्य विद्वानों से बातचीत करते हुए उन्हें देखने व सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। दिल्ली के ताल कटोरा स्टेडियम में स्वामी अग्निवेश जी द्वारा लगभग सन् 1994 में आयोजित आर्य महासम्मेलन में भी हमें उनके दर्शन करने व उन्हें पास से देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। स्वामी इन्द्रवेश जी का व्यक्तित्व भव्य, आकर्षक एवं प्रभावशाली था जो इन पंक्तियों के लिखते समय हमारी आंखों के सामने है।

 

स्वामी इन्द्रवेश जी की 10 वीं पुण्य तिथि पर उनको सश्रद्ध श्रद्धांजलि।

 –मनमोहन कुमार आर्य