कैसे व्यक्त करूँ…..
कैसे व्यक्त करूँ मैं अपने हृदय की व्यथा।
किंचितमात्र भी मुझको ना सुखों आभास हुआ।
नियति के हाथों मेरा कैसा भीषण उपहास हुआ
मेरा ये जीवन जैसे हो रहा व्यतीत वृथा
कैसे व्यक्त करूँ मैं अपने हृदय की व्यथा।
संजोती रही स्वप्न मधुर भावी जीवन के
वही छलता है सत्य में मेरा साथी बन के
जो भी इच्छित रहा नही वो मिला मुझे यथा।
कैसे व्यक्त करूँ मैं अपने हृदय की व्यथा।
कल्पना के लोक विचरती मैं अब धरा पे आ गई
निष्ठुर वास्तविकता मेरे सपने सभी बिखरा गई
शेष बची मेरे हिस्से में अश्रुओं की कथा।
कैसे व्यक्त करूँ मैं अपने हृदय की व्यथा।