राजनीति

स्वामी प्रसाद और मायावती की लड़ाई में किसको होगा लाभ?

जिस समय बसपा नेत्री मायावती पूरे जोर-शोर के साथ सरकार विरोधी लहर के बीच मिशन-2017 की तैयारियों में जुटी हुई थीं और अपने कार्यकर्ताओं को 300 सीटें जीतने का लक्ष्य देकर उनमें उत्साहवर्धन कर रही थीं, ठीक उसी समय बसपा के दूसरे सबसे बड़े कद्दावर नेता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने बसपा से बगावत करके प्रदेशवासियों को चैंका दिया है। स्वामी प्रसाद मौर्य की बगावत बसपा के लिए एक बहुत बड़ा आघात है। मौर्य की बगावत से बसपा के मिशन-2017 को भी करारा झटका लगा है। स्वामी प्रसाद मौर्य की अपनी जाति में अच्छी छवि है तथा उनके अच्छे खासे वोटर हैं। कहा जा रहा है कि मौर्य के साथ अभी कई और नेता, विधायक व सांसद हैं जो आगे चलकर बसपा नेत्री को चैंकाने वाले हैं। स्वामी की बगावत निश्चय ही बसपा के लिए हतप्रभ करने वाली घटना है। मौर्य का जिन पिछड़ी जातियों में वर्चस्व हैं उनकी प्रदेश भर में 8 से 9 प्रतिशत तक जनसंख्या है। अब देखना यह है कि जो बहुजन समाज पार्टी अभी तक हर प्रकार के सर्वे में सबसे आगे चल रही थी और बसपा सुप्रीमो मायावती पीएम मोदी और सपा सरकार पर लगातार हमलावर हो रही थीं, वह मौर्य की चुनौती से किस प्रकार से निपट पाती है। हालांकि अभी स्वामी और माया एक दूसरे पर आरोपों-प्रत्यारोपों की झड़ी लगा रहे हैं।

एक टीवी चैनल में आयोजित कार्यक्रम व मीडिया में स्वामी प्रसाद मौर्य जिस प्रकार से अपने साक्षात्कार दे रहे हैं, उससे भी अभी यह साफ संकेत नहीं मिल पा रहा है कि वे भविष्य में क्या करने वाले हैं। किस दल में जायेंगे सपा, भाजपा या फिर स्वयं अपना दल बनाकर बसपा के लिए सीधे नया संकट पैदा करेंगे और चुनावों के बाद संख्या बल के आधार पर अपना राजनैतिक स्वार्थ साधेंगे। स्वामी प्रसाद मौर्य का कहना हे कि बसपा इस समय टिकटों की नीलामी का सबसे बड़ा अड्डा बन गयी है। वहां पर टिकटों की नीलामी का रेट एक करोड़ से दस करोड़ तक हो गया है। वहीं मायावती स्वामी को गद्दार कहकर संबोधित कर रही हैं और आरोप लगा रही हैं कि स्वामी अपने बेटे और बेटी के लिए टिकट मांग रहे थे। मायावती स्वामी पर वंशवादी परम्परा को आगे बढ़ाने का आरोप लगा रही है।

वहीं राजनैतिक हलकों में यह भी चर्चा है कि मायावती को यह भी जानकारी हो चुकी थी कि मौर्य के सपा सरकार के साथ अंदर ही अंदर अच्छे संबंध हैं। सपा सरकार में मौर्य के सारे काम भी बिना रोकटोक हो रहे थे। वहीं विधानसभा सत्र के दौरान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव स्वामी प्रसाद मौर्य की प्रशंसा भी समय-समय पर करते रहते थे। बसपा सुप्रीमो मायावती का कहना भी है कि यदि मौर्य बगावत न करते तो हम उनको पार्टी से स्वयं निकाल देते। उन्होंने बहुजन समाज के साथ गद्दारी की है। फिलहाल सपा, भाजपा व कांग्रेस बसपा की बगावत का मजा ले रहे हैं तथा वहां की गतिविधियों पर बारीक नजर भी रख रहे हैं।

प्रदेश के सभी राजनैतिक दल अब मौर्य के अगले बड़े सियासी धमाके पर नजर गड़ाये बैठे हैं, हालांकि अभी तक स्वयं स्वामी प्रसाद मौर्य का रूख स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। लेकिन राजनैतिक क्षेत्रों से यह संकेत अवश्य मिल रहे हैं कि मौर्य के भाजपा नेताओं के साथ लगातार संपर्क बना हुआ है। इससे पूर्व जब मौर्य ने बसपा से बगावत का ऐलान किया था, उस समय उन्होनें बसपा सुप्रीमो मायावती पर भाजपा को मजबूत करने का आरोप लगाया था। अपनी प्रेसवार्ता के बाद मौर्य ने सपा नेता आजम खां और शिवपाल यादव से मुलाकात भी की थी। अब पूरे प्रदेश में इस बात के कयास लगाये जा रहे हैं कि मौर्य के साथ अभी कितने और नेता बसपा को गहरा झटका देने वाले हैं। खबरें यह भी आ रही हैं कि बसपा नेत्री मायावती ने अपने सबसे प्रमुख मुस्लिम नेता नसीमुददीन सिददीकि सहित तमाम नेताओं पर जासूस बिठा दिये हैं। बसपा सुप्रीमो को मौर्य के आघात के बाद अब अपने किसी बड़े नेता पर विश्वास ही नहीं रह गया है। कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनावों में मोदी लहर में बसपा की करारी पराजय के बाद बसपा में ही असंतोष का ज्वालामुखी गहरा रहा है जो कभी-कभी फटता रहता है लेकिन अब विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे आगे बढें़गे वैसे-वैसे बसपा को आघात लगते चले जायेंगे। ज्योतिष की नजर में भी बसपा का भविष्य कोई बहुत अच्छा नहीं दिखलायी पड़ रहा है। मौर्य की बगावत से बसपा में असंतुष्टों के हौसले नयें सिरे से परवान चढेंगे।

बसपा के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती यह आकर खड़ी हो गयी है कि उसे अब पिछड़े वर्ग को आकर्षित करने के लिए एक नया चेहरा तलाशना होगा। फिलहाल बसपा ने गया प्रसाद दिनकर को अपना विधायक दल का नेता चुना है और तृणमूल कांग्रेस के एकमात्र विधायक को पार्टी में शामिल करके डैमेज कंट्रोल करने का काम किया है। अभी स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने पत्ते खुलकर नहीं खोले हैं। संकेत मिल रहे हैं कि भाजपा व कांग्रेस के कई नेता उनसे संपर्क साध रहे हैं लेकिन स्वयं मौर्य भी इस बात का संकेत कर चुके हैं कि समाजवादी पार्टी गुंडों की पार्टी है और कांग्रेस में कम से कम जाना नहीं हैं। वहीं बगावत के समय मौर्य ने भाजपा को सांप्रदायिक कहकर कटाक्ष किया था। वहीं यह भी माना जा रहा है कि मौर्य अपने साथियों के साथ मिलकर अंबेडकरवादी व कांशीराम के विचारों का पालन करते हुए कोई नया दल व मंच बनाकर पीस पार्टी व औवेशी आदि की पार्टियों के साथ चुनावी तालमेल कर सकते हैं भाजपा में मौर्य का स्वागत तो हैं लेकिन मनुवाद के खिलाफ उनके तेवरों और देवी-देवताओं के प्रति अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल इसमें एक बड़ी बाधा हैं। लेकिन सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने व पिछड़ी जाति के एक बड़े नेता का साथ लेने के लिए कुछ भी किया जा सकता है। वैसे भी आज की राजनीति के दौर में सब कुछ जायज है।

इससे पूर्व बसपा से अलग होने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य ने बसपा नेत्री मायावती पर गंभीर आरोप लगाये। मौर्य ने एक बार फिर बसपा नेत्री मायावती को ”दौलत की बेटी“ कहा और कहा कि बसपा में पैसे देकर टिकट दिये जा रहे हैं। बसपा नेत्री सांप्रदायिक ताकतों से मिली हुई हैं तथा धन के लालच में भाजपा को मजबूत कर रही हैं स्वामी प्रसाद मौर्य ने बसपा नेत्री पर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होनें कांशीराम के नारे “जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी ” को बदलकर ”जिसकी जितनी थैली भारी, उसकी उतनी भागीदारी” का नारा लगा दिया है।“

अभी तक बसपा नेत्री मायावती प्रतिदिन केवल पीएम मोदी व केंद्र सरकार के साथ प्रदेश की समाजवादी सरकार पर ही हमलावर होती रहती थीं। समय से पहले ही जिताऊ उम्मीदवारों को टिकट दे रही थीं। लेकिन मौर्य की बगावत ने तो उनका खेल ही बिगाड़ कर रख दिया है। अब उनके सामने सबसे बड़ा संकट पार्टी के असंतोष और उससे उपज रही बगावत को रोकना भी हो गया है। यदि कहीं आगे चलकर बसपा के कई और नेता बगावत करते हैं तो मुस्लिम समाज जो मायावती के प्रति आकर्षित हो रहा था उसमें भी बदलाव आ सकता है तब बसपा के लिए हालात और गंभीर हो जायेंगे। उधर यह लेख लिखे जाने तक समाचार प्राप्त हुआ है कि मायावती द्वारा बुलायी गयी विधायक दल की बैठक में कई विधायक अनुपस्थित रहे हैं जिनको लेकर भी सुगबुगाहट शुरू हो गयी है। वहीं बसपानेत्री मायावती का कहना है कि स्वामी प्रसाद मौर्य की बगावत का बसपा की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है।

मृत्युंजय दीक्षित