“गज़ल”
घड़ी हूँ नियत समय चाह बताती हूँ
सुन री सखी वक्त आगाह बताती हूँ
धीरे-धीरे चलती बिन रुके सुई मेरी
भूल न जाना जीवन राह बताती हूँ॥
एक एक पल को रखती हूँ सहेजकर
शुरू तो कर सफर निर्वाह बताती हूँ॥
सुबह शाम रात दिन गोधुली गुबार में
घटे बढ़े दिन को उत्साह बताती हूँ॥
मौसम बेमौसम ऋतुओं के रहूँ साथ
ठंढ धुप बरखा को प्रवाह बताती हूँ॥
दर्द में लोगों को देखकर ठहर जाती
खुशी जब होती बेपरवाह बताती हूँ॥
मत हो अधिर लकीर के फकीरों में
समय को जगाना सलाह बताती हूँ॥
वक्त बेवक्त रथ चढ़ें महारथियों को
उतर गए आसन से पनाह बताती हूँ॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी