ग़ज़ल –
बुढ़ापे में अब हमसे कसरत नहीं होती , उन्हें प्यार ना हुआ ,ना सही , हमसे नफरत नहीं होती ।
ना होते हम भी आवारा ना फिरते तेरी गलियों में , गर दिल तोड़ जाने की तेरी फितरत नहीं होती।
ना होती चाह पाने की तुझे जाने तमन्ना फिर , न होता ज़िक्र फिर तेरा , तेरी हसरत नहीं होती।
दी है मात प्यादे ने मेरे ,तेरे दिल के वज़ीर को , हर एक जीत का मतलब , बस शौहरत नहीं होती।