अपना हक़ जता कर तो देखो
सबसे पहला हक़ है तुम्हारा
अरे एक बार
अपना हक़ जताकर तो देखो
न जाने दूंगा वापिस कभी तुमको
कम से कम एक बार
अपने गले से हमको लगाकर तो देखो
माना की आपकेे आगे
एक कतरा भी नही मै
पर एक बार मुझको भी
अपना बनाकर तो देखो
मेरे जिस्म से जुदा हो न पाओगे
एक बार मेरे पास आकर तो देखो
मैं तुम्हारा था
तुम्हारा हूँ
तुम्हारा ही रहूंगा सदा
अरे एक बार मुझको
आजमा कर तो देखो
चुरा लूँगा तुमको तुम्ही से
न होने दूंगा जुदा
बस एक बार अपनी आँखे
मेरी आँखों से मिलाकर तो देखो
सबसे पहला हक़ है तुम्हारा
अरे एक बार
अपना हक़ जताकर तो देखो
अच्छी कविता ! पर यह शायद पहले आ चुकी है।
हो सकता है इस से मिलती जुलाई कोई लिखी हो मैंने लेकिन ये कविता परसों ही लिखी है और इसका प्रथम पैरा फसबूक पे अपलोड किआ है मान्यवर।