गोरा हँसता है और काला…..
वो दौड़ता रहा
और आर्डर आर्डर
मज़े लूटता रहा ……
रंग भेद का भी
अजीब खेल है
गोरा हँसता है
और काला
बेमौत मरता है ……
जानवरों का भी
अपना खेला है
कोई बन्दूक से खेला
किसी ने कलम पेला……
बेजुबान का कोई
दर्द नहीं होता
चार पाव से कोई
शरीफ नहीं होता……
मर कर भी क्या
कोई रोता है
मारने वाला चैन
की नींद सोता है …….
नोट – साथियों उक्त कविता का अर्थ समझ में आये, तो कृपया ताली मत बजाईएगा, एक पत्थर उठा के लोकतंत्र की दीवार पर जरूर मारियेगा …….
सप्रेम
के एम् भाई