लघुकथा

लघु कथा : नदी के दो किनारे

जीवन संध्या में दोनों एक दूसरे के लिए नदी की धारा थे। जब एक बिस्तर में जिन्दगी की सांसे गिनता है तो दूसरा उसको सम्बल प्रदान करता है, जीवन की आस दिलाता है। दोनों जानते थे कि जीवन का अन्त निश्चित है, फिर भी जीवन की चाह दोनों में है। होती भी क्यों न हो, जीवन के आरम्भ से दोनों के लिए एक मित्र, सहपाठी और जीवनसाथी एवं बहुत कुछ थे। बचपन में एक दूसरे के साथ खेलना, आँख मिचौली खेलना, हाथ में हाथ लेकर दौड़ लगाना आदि खेलों ने जीवन में खूब आनन्द घोला। धूप-छाँव की तरह साथ-साथ समय बिताते थे। माँ चिल्लाती कहाँ गया छोरे! तो रामू चिल्ला जवाब देता था आया माँ! फिर अन्तराल पश्चात माँ ने आकर देखा कि रामू और उसकी बालिका सहचारी सीतू आम की बड़ी डाली पर बैठे-बैठे आम खाते-खाते बतिया रहे हैं, फुदकते हुए नज़र आते हैं।

स्कूली दिनों में बस्ता लादकर दोनों भाग रहे होते थे। सीतू जब भागते हुए थक जाती थी तो रामू उसका बस्ता ले हाथ पकड़ उसे अपने साथ दौड़ा रहा होता था। तभी से सीतू के लिए वह जीवन साथी, पति परमेश्वर सब कुछ था। एकबार सीतू ने रोते हुए हाथ पकड़कर जो तुम स्कूल ले जाते हो, इसे ऐसे ही पकड़े रहना कह कर सीतू रामू की छाती से लिपट उसके कपोल पर चुम्बन लेती लिपट भावविभोर हो गयी। रामू के गम्भीर चेहरे पर बस एक स्वीकारोक्ति होती थी। होती भी क्यों न रामू प्यार करने लगा था। उसे अपनी अर्द्धागिंनी मानने लगा था। जब जवानी उनमे घर करने लगी थी, तो जमाने की दीवार बीच में थी, समाज में स्वीकार न था उसका रिश्ता पर जहाँ चाह होती है वहाँ राह होती है। दोनों ने भागकर ब्याह किया और घर छोड़ दिया। उतार-चढ़ाव आए मगर दोनों ने एक-दूसरे का हाथ कसकर जो पकड़ रखा था।

रामू दिन भर मालिक के यहाँ रहता वहीं खाता बना हिसाब लगा ता था तो सीतू घर का सारा काम करती थी, शाम घर के चौक पर बैठी रामू के आने की राह तका करती थी, कितना स्नेह था उसके तकने में जो आज भी दोनों को स्थिर रूप से बाँधे था। आज जब रामू निसहाय बिस्तर में था, याद कर रहा है सीतू उसके पास समीप बैठी उसको अपने आँचल का सम्बल प्रदान कर रही है और रामू एक टक लेटा जैसा आकाश के तारे गिन रहा हो। शरीर साथ नहीं दे रहा था, साँसे उखड़ रही थी, देखते-देखते कुछ भी शेष न रहेगा। ऐसा लग रहा था सीतू को। सीतू के पास अब और कोई जीवन जीने का सहारा न था केवल रामू के। अतः सीतू यह सोचकर की रामू ठीक हो जाए हर सम्भव प्रयास कर रही थी, नीम हकीम से लेकर डॉक्टर्स के घर तक दस्तक दे, मन्दिर, मस्ज़िदों में माथा टेक आयी थी, संसार भी कितना निष्ठुर है। एक के रूठने पर दूसरा स्वयं रूठ जाता है, लेकिन सीतू की निष्ठा पति परायणता एवं पत्नी धर्म ने इस निष्ठुरता पर विजय पा ली थी।

सीतू और रामू एक नदी के दो किनारे थे। फिर से एक दूसरे के साथ थे। घर समाज को मनाने की कोशिश कर रही थी। लेकिन समाज के मापदण्ड दोनों के मिलन में बाधक थे, ही दूसरा रूठ जाता है लेकिन सीतू की निष्ठा पति परायणता एवं पत्नी धर्म इस निष्ठुरता पर जीत गया। सीतू और रामू जा एक नदी के किनारे थे फिर से एक दूसरे के साथ थे। सीतू को एक स्त्रियोंचित्त लक्षण प्रदान करने की कोशिश थी, माँ कहती थी खाना अच्छा बनाना पड़ोसी ज़मीदार और उनका बेटा तेरा रिश्ता जोड़ने आने को हैं। साड़ी उल्टे पल्ले की पहन खाना अच्छा खिलाना। सीतू को ये बातें माँ की एक क टोक्ति मात्र लगती थी। रामू जो उसका हो चुका था। प्रेम भी अजीब चीज है वह रामू की चुम्बनें लेती ऐसी प्रेम डोर में बंधी चली जा रही थी। जिसका कोई छोर न था। आलिंगनबद्ध है एक दूसरे का स्पर्श करते हुए भावविह्वल है। देखकर ऐसा लगता था मानो खुदा ने प्रेम को इन्हीं दोनों के रूप में जीवित रखा है।

डॉ. मधु त्रिवेदी

पूरा नाम : डॉ मधु त्रिवेदी पदस्थ : शान्ति निकेतन कालेज आॅफ बिजनेस मैनेजमेंट एण्ड कम्प्यूटर साइंस आगरा प्राचार्या, पोस्ट ग्रेडुएट कालेज आगरा उप संपादक "मौसम " पत्रिका में 2012 से फेसबुक पर सक्रिय साहित्यिक सफरनामा : विद्यार्थी जीवन स्कूल की मैगजीन में छपा करती थी तत्पश्चात कैरियर की वजह ब्रेक हुआ फिर वैवाहिक जीवन की जिम्मेदारी के कारण बाधित जनवरी , 2015 में "सत्य अनुभव है " आन लाईन पत्रिका में प्रकाशित हुई । मैगजीन जिनमें प्रकाशित India Ahead स्वर्गविभा आन लाइन पत्रिका अटूट बन्धन आफ लाइन पत्रिका झकास डॉट काम हिंदी लेखक डॉट काम हारीजन हिन्द अनुभव पत्रिका जय विजय वेब दुनिया मातृभाषा मंच भोजपुरी मंच शब्द नगरी रचनाकार पाख़ुरी शब्दों का प्याला सहज साहित्य साहित्य पीडिया पल -पल मीडिया होप्स आन लाइन पत्रिका भारतदर्शन अन्तराष्टीय पत्रिका अखबार जिनमें प्रकाशित ❇❇❇❇❇❇❇❇❇❇ हिलव्यू (जयपुर ) सान्ध्य दैनिक (भोपाल ) सच का हौसला अखबार लोकजंग ज्ञान बसेरा शिखर विजय नवएक्सप्रेस अदबी किरण सान्ध्य दैनिक ट्र टाइम्स दिल्ली आदि अखबारों में रचनायें विभिन्न साइट्स पर परमानेन्ट लेखिका इसके अतिरिक्त विभिन्न शैक्षिक शोध पत्रिकाओं में लेख एवं शोध पत्र आगरा मंच से जुड़ी Blog Meri Dunia Postal Address Dr Madhu Parashar 123 P.P.Nagar Sikandra Agra Pincode 282007 mob 9412652484 8171248456 साझा संकलन काव्योदय गजल ए गुलदस्त विहंग गीत शब्दों का प्याला email [email protected] [email protected] रूचि -- लेखन कवितायें ,गजल , हाइकू लेख 150 से अधिक प्रकाशित Reference Books --"टैगोर का विश्व बोध दर्शन नागार्जुन के काव्य साहित्य में प्रगतितत्व अन्य Text Books FOR M.ed ,B.ed ANVIKSHKI शोध पत्रिका BANARAS JYOTIRGAMAY JOURNAL OF EDUCATION CHITRAKUT , MEMBER OF ADVISORY BOARD FOR INDIAN STREAM RESEARCH JOURNAL FROM SOLARPUR MUMBAI INDIA

One thought on “लघु कथा : नदी के दो किनारे

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी लघुकथा !

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