कविता

कविता : मेरे बंधन

प्यार प्यार से बाँधा मुझको
पैर पैर से बांधा मुझको
हो सकते थे ये भी सबल
नजाकत से नापा मुझको
यूँ बांधा की चल ना सकूँ
चुगली करें जो चल भी दूँ
डोरी बाँधी रिश्तों की
बेडी पहना दी गहनों की
मुझको भाये मेरे बंधन
कैद से अनजान रहा मन
सदियाँ बीती इस बंधन में
नील पड गये अंतर्मन में
खोल दो बंधन पग ये चले
अम्बर को कर लें कदमों तले
पीड़ा से मुक्ति जो मिले
श्रृष्टि सदियों तक ये चले

सरिता पन्थी, नेपाल

सरिता पन्थी

बचपन से ही हिंदी साहित्य में विशेष रूचि रही है लगभग तीन वर्ष पहले ही मन के भावों को शब्दों में उकेरना प्रारम्भ किया है सामाजिक कुरीतियाँ और अवांछनीय परम्परायें ही लेखन का मुख्य विषय रहे है लेखन में सदा ही समाज को परिवर्तन का सार्थक सन्देश जाता रहा है | समाज के अनछुए और ज्वलंत विषयों पर लेखनी ने सदा ही प्रहार किया है | शैक्षिक योग्यता बी. ए. साहित्यिक हिंदी एम. ए. राजनीति शास्त्र, एच.एन.बी.गढ़वाल विश्वविद्यालय प्रकाशित रचनाएं  काव्य पल्लवन प्रतियोगिता के छायाँ चित्र पर कविता लिखने पर प्रथम पुरस्कार प्राप्त कविता "बसती दुनिया मेरी पेड़ो पर "  फिर से आई है बारी  सोते सोते रात में  चिरैया एक सोयी थी ही लेखन का मुख्य विषय रहे  कलयुगी बाबा  क्या सच में स्वतंत्र है हम ?  हाँ मैं किन्नर हूँ  तडपे है जिया ओ वैरी पिया  बहुत बुरा लगता था  पिया मोरे गये परदेश  तोड़ के बंधन बह गया ये मन पता- महेंद्रनगर , जिला कंचनपुर, नेपाल मोबाईल न. – 09779848720721 Email Id:- [email protected]