ग़ज़ल
जब से प्यार के सिलसिलो का इंतकाल हो गया
तब से नफरतो का सिलसिला कमाल हो गया।
रखते थे ख्याल अनजान का भी,जां लुटाके खुद की
अब तो भाई का भी भाई ,दुश्मन कमाल हो गया।
बच्चे होने पर थाली लोटे बजवा लेते थे,खुश होकर
अब तो मैरिजएनिवर्सरी में आर्केस्ट्रा का धमाल होगया।
पहले अलाव हर घर और चौपाल होता था
अब तो हर घर का अलाव, दिल्ली भोपाल हो गया।
पहले इंसान की इंसानियत और ईमान थी थाती
जबसे फैला भ्रष्टाचार ,भारत कंगाल हो गया।
लड़को के दहेज में मांगूगा अब तो दाल और टमाटर
अब तो घर में बने दाल को भी,कई साल हो गया।
— कवि दीपक गांधी