ग़ज़ल
किसी इंसान का जिस दिन भरोसा टूट जाता है |
भले ठंडी हवायें हो पसीना छूट जाता है ||
घरों में आजकल रिश्ता निभाना हो गया मुश्किल |
जरा सी बात पर देखो घरौंदा फूट जाता है ||
हमें बस डर यही लगता जुदा हम हो नहीं जायें |
जिसे हम प्यार करते हों वही जब टूट जाता है ||
ग़ज़ल में “हिन्द” ने लिख दी हकीकत आज की देखो |
अगर खुद को नहीं बदलें जमाना छूट जाता है ||
— बी.के. गुप्ता “हिन्द”