कविता

नजर आ रहा गया धाम में, समूचा हिन्दुस्तान !

 

अभिनन्दन और वंदन है बार-बार

कब से स्वागत को हम हैं तैयार

जहाँ विष्णु का चरण है यथावत

हम करते हैं आपका स्वागत !

 

पितरों को रहती है कामना

कष्ट से पड़े न कभी सामना

गया धाम में है यह शक्ति

यहाँ पितरों को मिलती है मुक्ति !

 

कण-कण में ईश्वर का वास

कामना लिए पितर करते प्रवास

मुक्ति की रहती है इच्छा

पितर करते यहाँ पर प्रतीक्षा !

 

पितर का होता है यह अरमान

गयाधाम में पुत्र करे पिंडदान

फल्गु के जल से तर्पण

पुत्र ! करते पितर को समर्पण !

 

चाहे प्रगति करे लाख इंसान

विश्वास जमाये क्यों न विज्ञान

कम नहीं हो रहा रूझान

सदियों से कायम है पिंडदान !

 

अलग-अलग वेश, यहाँ अलग-अलग भूषा

अलग-अलग चाल, यहाँ अलग-अलग ढाल

यहाँ विविध संस्कृति है, विविध है विधान

नजर आ रहा गया धाम में, समूचा हिन्दुस्तान !

 

दुखों से मिलता है त्राण

गया जी है तीर्थों का प्राण

इस भू की महिमा अपार

है वंदन बार-बार, अभिनन्दन बार-बार !

मुकेश कुमार सिन्हा, गया

रचनाकार- मुकेश कुमार सिन्हा पिता- स्व. रविनेश कुमार वर्मा माता- श्रीमती शशि प्रभा जन्म तिथि- 15-11-1984 शैक्षणिक योग्यता- स्नातक (जीव विज्ञान) आवास- सिन्हा शशि भवन कोयली पोखर, गया (बिहार) चालित वार्ता- 09304632536 मानव के हृदय में हमेशा कुछ अकुलाहट होती रहती है. कुछ ग्रहण करने, कुछ विसर्जित करने और कुछ में संपृक्त हो जाने की चाह हर व्यक्ति के अंत कारण में रहती है. यह मानव की नैसर्गिक प्रवृति है. कोई इससे अछूता नहीं है. फिर जो कवि हृदय है, उसकी अकुलाहट बड़ी मार्मिक होती है. भावनाएं अभिव्यक्त होने के लिए व्याकुल रहती है. व्यक्ति को चैन से रहने नहीं देती, वह बेचैन हो जाती है और यही बेचैनी उसकी कविता का उत्स है. मैं भी इन्हीं परिस्थितियों से गुजरा हूँ. जब वक़्त मिला, लिखा. इसके लिए अलग से कोई वक़्त नहीं निकला हूँ, काव्य सृजन इसी का हिस्सा है.