कुण्डली/छंद “कुंडलिया” *महातम मिश्र 28/10/201602/11/2016 कणकण है बिखरा जगत, धरती करें पुकार माँटी माँटी पूछती, कहाँ चाक कुंभार कहाँ चाक कुंभार, सृजन कर दीया-बाती आज अमावस रात, दीप बिन नहीं सुहाती कह गौतम अकुलाय, रहो जस माँटी कंकण अलग अलग दरशाय, मगर मिल जाएँ कणकण॥ — महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी