प्यारा बचपन
मॉ का लाडला
पापा का प्यारा
दादा-दादी का भी
दुलारा हूँ
दीदी,भैया का भी
मै ही सिर्फ इकलौता हूँ
सबके दिलो पर राज करके
खुब ही इठलाता हूँ
जो कहते वो पूरा होता
नही होने पर झट से
रूठ जाता हूँ
सबको थोडा परेशान करके
मजा खुद ही लेता हूँ
कभी छत पर कभी रूम मे
कभी कपडो के दराज मे छुपकर
सबको परेशान करता हूँ
जब सभी ढूँढ कर
थक हार बैठ जाते है
तब मै आकर अचानक
धप्पा बोल जाता हूँ
मम्मी डॉटती पापा डॉटते
फिर भी अपने काम से
बाज नही आता हूँ
थोडा नटखट थोडा शरारती
यही तो प्यारा बचपन होता हैं|
निवेदिता चतुर्वेदी ‘निव्या’