गीतिका/ग़ज़लपद्य साहित्य

नाखुदा

तना हो जो शज़र ज्यादा अकड़ कर टूट जाता है
नसीब बे-अदब लोगों का अक्सर फूट जाता है

मक्कारी की चादर में कहाँ पैबंद लगते हैं
ये चहरा आईने सा असलियत सबकी बताता है

ताज गैरत का सिर्फ उन्हीके सर पे होता है
मुफलिसी में भी चेहरा जिनका चमचमाता है

मुश्किलें भी हमेशा उनके ही हिस्से में आती है
दरिया आग का पल भर में ही जो लांघ जाता है

मेरी तक़दीर में क्यों रब जफ़ाएं ही लिख दी है
जिसको नाखुदा कहता हूँ,भंवर में छोड़ जाता है

(बे-अदब – अनादर कर वाले
मुफलिसी -गरीबी
जफ़ाएं – धोका
नाखुदा -मल्लाह )

अंकित शर्मा 'अज़ीज़'

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