उपन्यास अंश

आजादी भाग –१

राहुल बारह बरस का हो चला था । सातवीं कक्षा का विद्यार्थी था । पढाई के साथ सभी गतिविधियों में औसत ही था । खाना खाने में भी उसके नखरे कम नहीं थे । काफी मानमनौव्वल के बाद दो निवाले खाकर माँ बाप पर अहसान कर देता था ।
माँ के काफी ध्यान देने और टयूशन के बावजूद छमाही नतीजे में वह किसी तरह से पास हुआ था ।
उसके पिताजी ने ऑफिस से आकर उसका परीक्षाफल देखते ही गुस्से में उसे एक तमाचा रसीद कर दिया था । साथ ही उसकी माँ को भी डांट पीलाते हुए राहुल का खेलना और घूमना पूरी तरह से बंद करने के लिए कहा ।
राहुल को माँ बाप की सभी बातें नागवार गुजरती थी । उसे ऐसा लगता था जैसे माँ बाप बड़े होने की वजह से उसे धौंस दिखा रहे हों । खाना हो तो उनकी मर्जी , सोना हो तो उनकी मर्जी , खेलना हो या टी वी देखना या स्कूल जाना हो या कुछ भी करना हो सभी जगह उनकी ही मर्जी चलती थी । तंग आ गया था वह उनकी बंदिशों और नसीहतों से । अब वह आजादी चाहता था इन सबसे ।

दुसरे दिन राहुल स्कूल जाने के लिए निकला । चूँकि स्कूल घर से नजदीक ही था इसीलिए राहुल घर से स्कूल अकेले ही पैदल जाता था । घर से निकल कर राहुल अगले चौराहे से बायीं तरफ मुड़ने की बजाय सीधा आगे बढ़ गया और एक गुमटी की आड़ में अपने बस्ते में छिपा कर रखे कपडे को निकाल कर पहन लिया । अपने स्कूल के कपडे को बस्ते में ठूंस कर राहुल ने बस्ते को गुमटी के पीछे की झाड़ियों में उछाल दिया और चैन की सांस ली । अब वह आजाद था ।

राहुल अब उन्मुक्त पंछी की तरह उड़ना चाहता था । अपने सारे अरमान पूरे करना चाहता था । अब न उसे जबरदस्ती खाने के लिए कहने वाली माँ को झेलना था और न ही पढ़ाई में कम नंबर आने पर अपने पिता की डांट पड़ने का डर । वह अब इन सबसे आजाद बिलकुल अपनी मर्जी का मालिक था । अब वो जो चाहे कर सकता था ‘ जब चाहे खा सकता था । अपने भविष्य के सपने बुनते हुए वह अपनी आजादी के बारे में सोच ही रहा था कि उसके दिमाग में बिजली सी कौंधी ‘ बेटा ! ख्याली पुलाव तो बढ़िया पक रहा है । लेकिन कभी सोचा कि शाम को स्कूल की टाइम के बाद भी जब घर नहीं पहुंचेगा तो माँ बाप सगे सम्बन्धी सभी ढूंढने लगेंगे । फिर भी नहीं मिला तो पुलिस भी खोजने लगेगी और फिर क्या इसी शहर में रहकर तू पुलिस से बच पायेगा ? नहीं ! पकड़ा जायेगा और फिर वही सब कुछ चालू हो जायेगा उलटे पिताजी की डांट बढ़ जाएगी भागने की वजह से ।’
कुछ देर तक राहुल वहीँ खड़ा कुछ सोचता रहा और फिर लापरवाही भरे अंदाज में सड़क के एक तरफ से रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ने लगा ।
राहुल कुछ ही समय में प्लेटफोर्म पर था ।
मन ही मन वह चिंतित था कहीं कोई देख न ले और वही हुआ जिसका उसे डर था । उसके पड़ोस में रहनेवाले शर्माजी ने उसे बेंच पर बैठे देख लिया । चलकर उसके पास आये और बोले ” अरे बेटा राहुल ! तुम यहाँ क्या कर रहे हो ? ”
उन्हें देख कर राहुल सिहर गया था लेकिन तुरंत ही एक सफल कलाकार की तरह से दिल का हाल चेहरे पर लाने से बचते हुए मुस्कान बिखेरते हुए बोला ” अंकलजी ! वो क्या है न कि मेरा एक मित्र दुसरे शहर से आ रहा है । उसी को रिसीव करने आया हूँ ।”
” अच्छा ! तो ठीक है । संभल कर घर जाना । ” उसे नसीहत देते हुए शर्माजी आगे बढ़ गए । शायद उनकी ट्रेन का समय हो गया था । उनके जाते ही राहुल ने चैन की सांस ली । वह उठा और शर्माजी से विपरीत दिशा में बढ़ गया ।
सामने से आते टी सी को देखते ही उसका दिल जोर से धड़क उठा लेकिन ठीक उसी समय शोर मचाती ट्रेन आकर प्लेटफोर्म पर रुक गयी थी ।
वह टी सी स्टेशन के मुख्य द्वार पर जाकर खड़ा हो गया और राहुल एक बार फिर आगे बढ़ गया । ट्रेन के पीछे के हिस्से में सामान्य श्रेणी के डिब्बे में घुस गया । उसके घुसते ही ट्रेन चल पड़ी । राहुल का मन मयूर नाच उठा ।
एक बार उसने सतर्क निगाहों से पुरे डिब्बे का मुआयना किया । कहीं कोई टी सी नहीं था देखकर उसने गहरी सांस ली और दरवाजे के समीप ही खड़ा बाहर के नज़ारे का लुत्फ़ उठाने लगा । उसे याद आ गया वह पल जब वह अपने माता पिता के साथ इसी तरह ट्रेन से मौसी के यहाँ जा रहा था । उसने माँ से कितनी विनती की थी कि उसे दरवाजे से बाहर देखने दे लेकिन उन्होंने उसे इजाजत नहीं दी थी । ज्यादा जिद करने पर उसे बुरी तरह डपट दिया था ।
आज वह बहुत खुश था । अपनी मर्जी का मालिक था । बड़ी देर तक वह दरवाजे पर खड़ा बाहर के दृश्य देख कर खुश होता रहा । तेजी से पीछे छूटते पेड़ खेत कुएं और दुर स्थित पहाड़ियां देख देख उसे आश्चर्य भी हो रहा था और हार्दिक प्रसन्नता भी हो रही थी । उसे ऐसा लग रहा था जैसे उन्हीं के साथ उसकी परेशानियाँ भी तेजी से पीछे छूटती जा रही हैं ।
ट्रेन सरपट भागी जा रही थी । शीघ्र ही कोई बड़ा शहर आनेवाला था । बड़ी बड़ी कालोनियां बिल्डिंगें दिखने लगी थीं चौड़ी सड़कें और उनपर वाहनों की कतारें जो ट्रेन के साथ ही चलती हुयी सी प्रतीत हो रही थीं । थोड़ी ही देर में ट्रेन स्टेशन पर पहुँच कर रुक गयी ।
राहुल ट्रेन से उतर पड़ा । उतर कर निकासी की तरफ बढ़ ही रहा था कि टी सी को मुख्य दरवाजे पर खड़ा देखके घबरा गया । बाहर निकलने की बजाय वह वहीँ एक खाली बेंच पर बैठ गया । थोड़ी ही देर में भीड़ छंट गयी लेकिन राहुल की खुशकिस्मती से टी सी भी तब तक वहां से हट चुका था । मैदान साफ़ देखकर राहुल निकास की तरफ बढ़ गया ।
शीघ्र ही वह स्टेशन की ईमारत से बाहर निकल कर सड़क पर आ गया ।
दोपहर ढल चुकी थी । इस समय उसके स्कूल में लंच के लिए छुट्टी होती थी । आदत के मुताबिक अब उसे भुख महसुस हो रही थी लेकिन आज उसके पास बैग में पड़ा टिफिन नहीं था । टिफिन तो बस्ते में रखा था जिसे वह बस्ते के संग ही फेंक आया था ।
भूख लग रही थी अब वह क्या करे ? क्योंकि वह पैसे भी नहीं लाया था ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।