वात्सल्य
एक चपत
लगाकर
तुम्हारे गालों पर
किया शांत
अपने क्रोध का
लुढ़कते
आंसू तुम्हारी
ह्रदय को चीरता
मेरा पश्चताप
कुछ देर बाद
फिर तुम्हारे
मीठे बोल “माँ ”
शब्द का …
विह्वल
होता मेरा हृदय
और
आगोश में फिर
तुम
उष्णता लिए
चूमता माथा
आह्लादित
तुम और
स्नेह लुटाती
वही मैं ……।
— ऋता सिंह “सर्जना”
तेजपुर (असम)