मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम की चुनौतियां
तमिलनाडु के नये मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम भी देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरह वैसे नेता है जो फर्श से अर्श तक पहुंचे है । प्रधानमंत्री जी की तरह चाय के स्टाॅल से अपना जीवन शुरू करने वाले पन्नीरसेल्वम पहली बार मुख्यमंत्री नहीं बने है अपितु इसके पहले भी पन्नीरसेल्वम दो बार कार्यवाहक मुख्यमंत्री रह चुके है । पीछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री स्व. जयललिता के बिमारी के बाद से जो तमिलनाडु में उथल-पुथल का माहौल था उनके मृत्यु के उपरांत बिना किसी विरोध के पन्नीरसेल्वम का मुख्यमंत्री हो जाना इस बात की पुष्टि करता है कि पन्नीरसेल्वम जयललिता के वफादार तो थे ही साथ उनकी पैठ और स्वीकृति पार्टी में बहुत अच्छी है । यह खबर जितनी पन्नीरसेल्वम और अन्नाद्रमुक के लिय अच्छी है उतना ही इसका महत्व तमिलनाडु की प्रदेश सरकार की स्थिरता के लिए भी है । लेकिन जयललिता के काल के गाल में समा जाने के बाद तो रिक्ता आई उसे पाटना एक बहुत बड़ी चुनौती होगी । आने वाले दिनों तामिनाडु के नये मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम को इसी अग्नि परीक्षा से गुजरना होगा । ऐसे यह देखना जरूरी है कि आखिर किन किन बुनियादी चुनौतियों का सामना पन्नीरसेल्वम को करना पड़ सकता है ।
जैसा की मैने पहले ही लिखा कि यह पहली बार नही है कि पन्नीरसेल्वम ने मुख्यमंत्री का पद भार संभाला है । लेकिन तब की स्थिति और अब की स्थिति में एक बुनियादी अंतर यह है कि पहले दोनों बार उन्होंने मुख्यमंत्री पद का शपथ सिर्फ जयललिता के वफादार सिपाही के रूप में लिया था । हलांकि उसका निर्वाह भी उन्होंने बखूबी किया था लेकिन तब अन्नाद्रमुक के सभी वरिष्ठ नेता इस बात से अवगत थे कि यह एक वैकल्पिक व्यवस्था है जो जयललिता के वापसी के साथ समाप्त हो जाएगी और ऐसा हुआ भी दोनों बार पन्नीरसेल्वम ने जयललिता को सत्ता वापस सौंपने में देर नहीं की , लेकिन आज की जो हालात है वो कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं अपितु जयललिता के विरासत को संभालने जैसा है । ऐसी स्थिति में भले ही कुछ वरिष्ठ नेता वक्त की नजाकत को देखते हुए अभी चुप बैठ जाए लेकिन आने वाले समय में भी विरोध के स्वर नहीं उठेंगे यह कहना मुश्किल है । इसलिए आने वाले दिनों में जो सबसे बड़ी चुनौती का सामना पन्नीरसेल्वम को करना होगा वह है अन्नाद्रमुक को एकजुट रखना ।
पन्नीरसेल्वम पहले दो बार मुख्यमंत्री के साथ विधान सभा में विपक्ष के नेता तथा 2011 – 2014 जयललिता के सरकार में वित्त मंत्री भी रह चुके है। उनमे अनुभव की कोई कभी नहीं है । लेकिन वो हमेशा से जयललिता के बेहद वफादार रहे है । कहने का तात्पर्य यह है कि इससे पहले विभिन्न पदों पर रहते हुए भी उनका कोई भी निर्णय बिना जयललिता के सलाह से लिया गया होगा यह कहना मुश्किल है। ऐसे में जब जयललिता अब दुनिया में नहीं है पन्नीरसेल्वम को बतौर मुख्यमंत्री सारे निर्णय स्वविवेक से लेना होगा । यह भी बहुत चुनौतीपूर्ण होगा ।
अब तक मुख्यमंत्री और पार्टी की कमान दोनों जयललिता ही संभालती थी ।लेकिन उनके जाने के बाद क्या पन्नीरसेल्वम खुद दोनों पद संभालेंगे ? हालाकि उन्होने जल्द ही नई टीम बनाने की घोषणा कर दी है । लेकिन अटकले तेज है कि जयललिता की खास मित्र शशि कला को महासचिव का पद मिल सकता है । अन्नाद्रमुक की परिपाटी रही है कि महासचिव ही पार्टी की बागडोर संभालता है । लेकिन शशि कला आज की तारीख में जयललिता की बेहद बेहद करीबी मानी जाती थी लेकिन उनका रिश्ता भी जयललिता के साथ खट्टा मीठा रहा है । ऐसे में मुख्यमंत्री के तौर पर पन्नीरसेल्वम को शशि कला को किसी पद को सौंपते हुए बेहद सजग रहना होगा । क्योंकि आने वाले दिनों में मुख्यमंत्री के तौर पर उनकी दावेदारी से भी इंकार नहीं किया जा सकता है ।
तमिलनाडु में अम्मा के तौर पर जाने वाली जयललिता के शव यात्रा में उमड़ी भीड़ उनकी लोकप्रियता की पुष्टि करते है । हालांकि राजनीतिक तौर पर भी लगातार दो बार वो मुख्यमंत्री पद के लिए चुनी गई और उनकी पार्टी की लगातार दूसरी बार चुनाव जीती यह तामिनाडु में इतिहास बनाने जैसा ही था । लेकिन आम नागरिकों तक अम्मा की पैठ का मुख्य कारण अम्मा ब्रांड है । कैंटीन से लेकर सिनेमाघर, सिमेंट से लेकर नमक मोबाईल फोन से लेकर लैपटॉप तक , तथा एम्बुलेंस से लेकर बेबी किट तक को बेहद सस्ते दाम पर मुहैया करवाना, एक बेहद सटीक कदम था लेकिन ऐसा किसी ब्रांड को प्रमोट करना जितना आकर्षक था उतनी ही खतरनाक भी , क्योंकि आम नागरिक को कोई ब्रांड अगर पसंद आ जाए तो वो उन्हे छोड़ना नहीं चाहते लेकिन अगर वहीं ब्राड अपने दावे पर खड़ा नहीं उतर पाए तो उसे सिरे से खारिज करते भी देर नहीं लगती है । इसलिए अम्मा ब्रांड बनाने से अधिक जयललिता के लिय चुनौतीपूर्ण था उस ब्रांड की इमेज बनाना, जिसमे वो बेहद सफल रही और यही उनकी लोकप्रियता की बुनियाद रही है लेकिन बतौर मुख्यमंत्री अब पन्नीरसेल्वम की जिम्मेदारी है कि वे अम्मा ब्रांड को वैसे ही बनाए रखे । यह एक बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य होगा ।
राष्ट्रीय स्तर पर अन्नाद्रमुक का अभी ना भाजपा से न ही काग्रेस से कोई गठबंधन है । जयललिता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ज्यादा करीब मानी जाती है । उनकी मृत्यु के पश्चात नरेन्द्र मोदी स्र्वंय बिना किसी देरी के न सिर्फ तमिलनाडु पहुँचे है साथ शशि कला और मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम का ढाढस बंधाया है आने वाले दिनों में अन्नाद्रमुक के एन डी ए में प्रवेश के संकेत से भी देखा जा रहा है । ऐसी स्थिति राष्ट्रीय स्तर पर अपनी और अपने पार्टी की जिम्मेदारी और साथ तय करना एक बड़ी जिम्मेदारी है ।
जयललिता के इतनी लोकप्रियता के साथ उनपर भ्रस्टाचार के आरोप लगते रहे है । अभी भी वो जमानत पर ही कारागार से बाहर थी । हलांकि अभी चुनाव में तकरीबन चार वर्ष शेष है । मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम को एक भ्रष्टाचार मुक्त शासन तो देना ही होगा साथ अन्नाद्रमुक पर लगे दाग को भी धोने की कवायद करनी होगी । ये उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी ।
कुल मिलाकर पन्नीरसेल्वम बिना किसी विरोध के मुख्यमंत्री तक तो पहुंच गए है लेकिन पन्नीरसेल्वम से अम्मा तक का सफर तय करने के लिए अभी बहुत चुनौतियों का सामना करना शेष है ।
अमित कु अम्बष्ट ” आमिली “