कविता : झूठा वादा
रिश्ता निभाया मैंने , पर कमी कोई रही होगी
किया जिससे प्यार , शायद वही प्यासी होगी
छोड़गए तुम मूजको , पर नयनों से नही हटेंगे
कैसे दूर रहू मैं उनसे , जिस नयनन मे बसे रहेंगे
सूखे सब आँसू भी , पलकों तक आते आते
ख़ैर जाना ही था तो , कह कर ही चले जाते
पूनम की रात भी , गुज़री अमावस सी रात
याद आते है वो पल , जो बिताए हमने साथ
जीवन के राह में अब , एक नया दौर है आया
वादों को सब भुलाकर , दावों का दौर है छाया
झूठे वादों से बहेतर , झुटा प्यार का अहेसास
दोस्ती होगई झुट से , टूटा सच्च पर विश्वास
अहेसान हुआ तुम्हारा , जो प्यार भरा दर्द दिया
मेरे नयनों को तुमने , आँसू का समंदर बना दिया
ज़िंदगी को मुझसे , न जाने क्या हुई तकलीफ
प्यार भरे दामन में , हुआ सिर्फ़ दर्द का इज़ाफ़ा
आज सोचता हु शायद , की मेरा प्रेम अधूरा है
पर उम्मीदों से भर पुर , मेरा विश्वास अधूरा है
प्रत्येक शब्द इस कविता , में विरह गीत लिखेगा
हर पंक्ति इस कविता की , “राज” दर्द के कहेगा
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✍?️.. राज मालपाणी
शोरापुर – कर्नाटक