स्मृति
याद है तुमने कहा था ,
सदा संभाल कर रखना
मेरी सुर्ख़ मोहब्बत को …
अपनी ज़िल्दों के बीच…
जब जब पलटोगी पन्ना ,
अपनी यादों की खुशबू से…
महकाऊँगा सुवासित करूँगा..
मैंने भी तो मान लिया था…
तुम्हारे स्नेहिल अनुग्रह को ,
और कच्चे कागजों को छोड़,
सहेज़ लिया था ,तुम्हें क़ल्ब में…
जहाँ वह न सूख सकता था..
न ही कभी मुरझा सकता था …
आओ, देखो न ..प्रिय ,
आज भी वह हर धड़कन के साथ
मेरी साँसों को महका रहा है …
मेरे रोम रोम को हर्षा रहा है ..
तुम्हारी करीब न होने पर भी
होने का अहसास करा रहा है …
— शशि बंसल