गुरुकुल गौतमनगर, दिल्ली में आयोजित गुरुकुल सम्मेलन में वैदिक धर्म व संस्कृति की पोषक महनीय प्रभावशाली प्रस्तुतियां
ओ३म्
हम गुरुकुल गौतमनगर दिल्ली के 83 वें वार्षिकोत्सव में 17 व 18 दिसम्बर, 2016 को सम्मिलित हुए। 17 दिसम्बर को अपरान्ह हुए चतुर्वेद पारायण यज्ञ का कुछ वृतान्त हम कल अपने लेख में कर चुके हैं। यज्ञ के समापन के पश्चात गुरुकुल सम्मेलन आरम्भ हुआ जो सायं 5.30 बजे से आरम्भ होकर रात्रि 9.30 बजे तक चला। इस सम्मेलन में वैदिक धर्म एवं संस्कृति का साकार रूप देखने को मिला। गुरुकुल के ब्रह्मचारियों ने संस्कृत में भाषण, कवितायें, नाटक, कव्वाली, अन्त्याक्षरी, मंगलाचरण आदि नाना प्रस्तुतियां कीं जो सभी प्रशंसनीय एवं दर्शनीय थी। गुरुकुल सम्मेलन का आरम्भ ब्रह्मचारी श्री ऋषि कुमार के दो भजनों से हुआ। पहला भजन था ‘आपस में प्रेम करो देश प्रेमियों, मेरे देश प्रेमियों, आपस में प्रेम करो देश प्रेमियों।‘ यह ब्रह्मचारी लगभग पांच वर्ष की आयु में गुरुकुल पौंधा में प्रविष्ट हुआ था। हमने इसे प्रवेश के समय ही देखा था। तब यह बहुत छोटा था, इसमें कुछ आकर्षण था जिस कारण उस दिन घटना आज तक हमारी आंखों के सामने उपस्थित है। इसने अपने कक्ष में अपना सन्दूक खोला हुआ था। उसमें सामान को इधर उधर कर रहा था। एक छोटा सा दर्पण था। जिसमें यह कभी कभी अपना मुख देख लेता था। आस पास कोई नहीं था। मैं और मेरे मित्र श्री राजेन्द्र काम्बोज इसकी छवि को निहार रहे थे। उस दिन से हमें इस ब्रह्मचारी से विशेष स्नेह सा हो गया था। अब यह लगभग 16 वर्ष का किशोर हो चुका है। इस ब्रह्मचारी के गीतों के बाद ब्रह्मचारी अभिषेक, शिवम्, हिमांशु आदि कुल 6 ब्रह्मचारियों ने मिलकर संस्कृत में मंगलाचरण प्रस्तुत किया। इस के बाद 4 ब्रह्मचारि यों शिवम् आदि ने लौकिक मंगलाचरण प्रस्तुत किया। लौकिक मंगलाचरण के पश्चात तीन ब्रह्मचारियों विक्रम, पंकज और रोहित ने मिलकर स्वागत गीत प्रस्तुत किया। अमेरिका से पधारे ऋषि व वेद भक्त, याज्ञिक एवं दानी श्री जय भगवान जी को अध्यक्ष मनोनीत किया गया और उनका पुष्पाहार से स्वागत किया गया। श्री जयभगवान जी ने गुरुकुल में ब्रह्मचारियों की छात्रवृत्ति के लिए लगभग 31 लाख रूपये की एक स्थिर निधि स्थापित की है। भविष्य में भी उन्होंने गुरुकुल की सहायता करते रहने का आश्वासन दिया है। श्री जयभगवान जी के बाद डा. महावीर जी, स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी, डा. यज्ञवीर जी आचार्य गुरुकुल पौंधा, आचार्य रामपाल जी, डा. धर्मवीर शास्त्री आदि का पुष्पाहारों से स्वागत किया गया। स्वागत आयोजन के समापन पर ब्रह्मचारी सन्देश ने ‘संस्कृति और संस्कृत’ विषय पर संस्कृत में प्रभावशाली भाषण दिया। इसके बाद संस्कृत संवादों का प्रयोग करते हुए एक नाटक प्रस्तुत किया गया। नाटक के बाद एक ब्रह्मचारी श्री जितेन्द्र जी ने ‘भूख’ पर एक बहुत प्रभावशाली कविता सुनाई जिससे अनेक श्रोताओं की आंखे गीली हो गई।
ब्रह्मचारी जितेन्द्र की भूख पर कविता के बाद ब्रह्मचारी लक्ष्मण ने ‘पतित पावनी गंगा’ विषय पर अच्छा धारा प्रवाह प्रभावशाली भाषण दिया। इस प्रस्तुति के पश्चात ‘हमारी शिक्षा पद्धति कैसी हो?’ विषय पर ब्रह्मचारी अनिल ने प्रभावशाली भाषण दिया जो अत्यन्त प्रभावशाली होने के साथ ब्रह्मचारी की भाव भंगिमा एवं विषय वस्तु व विचारों की दृष्टि से भी सराहनीय एवं प्रशंसनीय था। ब्रह्मचारी राहुल ने देशभक्ति के विचारों से पूर्ण शहीदों के प्रति एक प्रभावशाली कविता का पाठ किया जिसे सुनकर श्रोता मंत्रमुग्घ हो उठे। विजयनगर साम्राज्य की विशेषताओं को प्रदर्शित करने वाला एक प्रशंसनीय नाटक भी हुआ जिसके सभी कलाकारों का अभिनय यथार्थ रूप लिये हुए था। सभी श्रोताओं ने इसका आनन्द लिया। नाटक के सभी संवाद संस्कृत में थे। इसमें दिखाया गया कि राज दरबार में एक विद्वान आता है जिसे अनेक भाषायें आती थी। वह कहता है कि वह सभी भाषायें बोलेगा और दरबार के लोगों को यह बताना होगा कि उसकी मातृभाषा क्या है? समुचित वा सही उत्तर मिलने पर ही वह अन्न व जल ग्रहण करेगा अन्यथा नहीं। सारा दरबार उस विद्वान कवि की वक्तृता सुनकर मुग्ध हो गया परन्तु उसकी मातृ भाषा का पता न चल सका। फिर युक्ति का सहारा लिया गया। उस कवि को कुछ कांटा आदि चुभता है तो वह चिल्ला उठता है और कुछ शब्दों का उच्चारण भी करता है। इससे उसकी मातृभाषा का सही अनुमान लगा। इससे यह सिद्ध होता है कि मनुष्य कितनी भी भाषायें सीख ले परन्तु जब उसे कष्ट होता है तो वह अपनी मातृ भाषा में ही कराहता व दुःख की अभिव्यक्ति करता है। यह नाटक अत्यन्त प्रभावशाली व रोचक था जिसने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया था।
इस नाटक के बाद ब्र. विक्रम कुमार ने एक कविता प्रस्तुत की। यह कविता व्याकरण के ज्ञान से संबंधित थी जिसमें कहा गया था कि सभी लोगों को संस्कृत का व्याकरण आना चाहिये जिससे चहुंओर का वातावरण सुरभित व सुवासित हो जाये। कार्यक्रम का एक आकर्षण ब्रह्मचारियों द्वारा कव्वाली की प्रस्तुति थी जिसमें कव्वाली के अनुरूप वेश भूषा पहन कर उसी के अनुरूप प्रभावशाली ढंग से उसे प्रस्तुत किया गया। कव्वाली के आरम्भ के शब्द थे ‘जागो रे जागो तुम्हें कब तक सोना है।’ कव्वाली की समाप्ति पर संस्कृत में एक ब्रह्मचारी का प्रभावशाली भाषण हुआ और उसके बाद संस्कृत कविता व श्लोकों की अन्त्याक्षरी हुई। इसके साथ ही यह कार्यक्रम समाप्त हुआ। बीच बीच में लोग कार्यक्रम की प्रस्तुतियों को देखकर भाव विभार हो जाते थे ओर प्रतियोगियों को नगद धनराशि देकर सम्मानित व प्रोत्साहित करते थे। रात्रि लगभग 9.30 बजे यह सम्मेलन समाप्त हुआ। स्वामी प्रणवानन्द जी, डा. महावीर जी सहित गुरुकुल गौतम नगर पधारे हुए सभी विद्वान व आगन्तुकों सहित सभी ब्रह्मचारी सम्मेलन में उपस्थित थे।
यह कार्यक्रम हमें ऐसा लगा कि इसकी सभी प्रस्तुतियों की वीडियों रिकार्डिगं कर उसे यूट्यूब जैसे साधनों से प्रचार करना चाहिये था। इससे अन्य शिक्षण संस्थाओं पर गुरुकुल की उत्कृष्टता की धाक जम सकती है। सम्मेलन में प्रस्तुत सभी प्रस्तुतियों के लिए जहां ब्रह्मचारी बधाई के पात्र हैं वहीं स्वामी प्रणवानन्द जी और गुरुकुल के सभी आचार्य भी बधाई के पात्र हैं। आयोजन के समापन पर भोजन हुआ और इसके बाद सबने अपने अपने कक्षों में जाकर शयन किया।
–मनमोहन कुमार आर्य