गजल
तनहाई को मीत बनाओ तो जानूँ!
गम को अपने गीत सुनाओ तो जानूँ!
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लौ से मिलकर जले न कोई परवाना,
प्रीत की ऐसी रीत चलाओ तो जानूँ !
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नरम दिलों को पत्थर होते देखा है ,
पत्थर को नवनीत बनाओ तो जानूँ !
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सभी कोसते रहते काली रातों को,
आगे बढ़कर दीप जलाओ तो जानूँ !
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जो भविष्य के लिए अमर कर दे तुमको,
ऐसा कोई अतीत बनाओ तो जानूँ !
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बुरे स्वप्न तुम बीत गए मैं जाग गया ,
अब तुम मुझे सभीत बनाओ तो जानूँ !
© दिवाकर दत्त त्रिपाठी