कहाँ हो तुम
कहाँ हो तुम
सप्ताह के अंत में
होता था तुम्हारा आना …
वो एक शाम
जो गुजारा करते थे
तुम मेरे नाम ……
प्रेम कि उष्णता लिए
होंठो पर ढ़ेर सारी मुस्कान
बिसराकर सारे गम – और – ख़ुशी
हो जाती तुम्हारे प्रेम में
मै पगली गुमसुम गुमनाम…..
पिछले कई सप्ताह से
कर रही हूँ तुम्हारा इंतजार ….
कहाँ खो गए तुम …..
वो प्रेम कि ऊष्मा अब
इंतजार कि ठंड में बदल रही है ….
आँखों के बरसते आंसू अब
इंतजार कि हद बता रहें हैं ….
कहाँ हो तुम
कहाँ चले गए….