कविता

पत्थरबाजों का भी संहार जरूरी है

जब से सेना ने बोला है , मददगार को फाड़ेंगे
पत्थर बाजो को आतंकी ,के जैसे ही मारेंगे

इतना सुनते ही देखा है , सारे दल्ले विचलित है
ऐसे गद्दारो की हरकत, से हम सारे परिचित है

कैसी है ये मंशा उनकी ,कैसी उनकी भाषा है
आतंकी को पालेंगे वो ,लगता ये अभिलाषा है

गिद्धों से नुचवाना खुद को , अब ना ये मजबूरी है
आतंकी के शुभचिंतक का , भी संहार जरूरी है

— मनोज “मोजू”

मनोज डागा

निवासी इंदिरापुरम ,गाजियाबाद ,उ प्र, मूल निवासी , बीकानेर, राजस्थान , दिल्ली मे व्यवसाय करता हु ,व संयुक्त परिवार मे रहते हुए , दिल्ली भाजपा के संवाद प्रकोष्ठ ,का सदस्य हूँ। लिखना एक शौक के तौर पर शुरू किया है , व हिन्दुत्व व भारतीयता की अलख जगाने हेतु प्रयासरत हूँ.