उसकी कहानी भाग – २
इसके लगभग दो वर्ष बाद मुझे ब्लड कैंसर ग्रस्त बताया गया । मेरे साथ मेरे ६२ वें जन्मदिन पर घटी घटना को मैंने महज एक इतेफाक मान लिया, एक दुर्घटना एक संयोग जो की मेरी बहुत बड़ी भूल थी ।
मैं मन ही मन खुश हुआ कि चलो ६२ ना सही ६४ ही अब तो मिलन जल्द होगा । अब कब तक वह छुपेगा ? मुझे कबीर दास जी की यह पंक्तियाँ याद आ गई
“जिस मरने पे जग डरे मेरे मन आनंद
कब मिटहूँ कब भेटहूँ पूरण परमानंद ”
मुझे इतना ही पता था कि ब्लड कैंसर याने मौत किसी भी प्रकार से बचने कि कोई उम्मीद नहीं । मैं भी कितना मूढ़ था फिर भूल गया कि ६२ वें जन्मदिन के दिन क्या हुआ था । उसने अहसास दिलाया था कि तू तब आएगा जब मैं चाहूंगा ।
मेरी कीमोथेरेपी शुरू हुई । ६ बार कीमो के बाद हालात बहुत खराब हो गई । बहुत कमजोरी । कुछ दिन घर में आराम के बाद डॉक्टर ने बुलाया । सीटी स्कैन हुआ , डॉक्टर ने कहा बोन मेरो करवाना पड़ेगा । आपको कोई खर्च नहीं करना पड़ेगा । हम आपके इंश्योरंस से स्वयम सब कर लेंगे । मैंने इनकार कर दिया अभी तो मौका मिला है उससे मिलने का । घर वालों को भी कष्ट दूं खुद भी कष्ट भोगूं बेहतर है जल्दी जाने की तैयारी करूँ । मेरे भ्राता डॉक्टर हैं मिलने आये कहा गलती कर रहा है अगर बोन मेरो नहीं करवाया तो जिंदगी कुछ दिन की है । परंतु मैं उससे मिलने की जल्दी में था । मैं अपनी बात पर अड़ा रहा । मेरे डॉक्टर भ्राता ने कहा कि अपनी पत्नी को सब समझा दे , वसीयत वगैरह जल्दी लिख कर रख दे । मैंने ऐसा ही किया । पत्नी पूरी ईश्वर भक्ति में लीन है उससे पूछा कहने लगी जैसी ईश्वर कि मर्जी ।
मर्जी मेरी नहीं उसकी चली । वह एक व्यक्ति बनकर मेरे पास आया । वह कहने लगा मेरे पास जड़ी बूटियां हैं । सिर्फ पानी में उबाल कर चाय की तरह पीना है । मैंने सोचा जाना तो है ही जड़ी बूटियों ने काम किया तो ठीक अन्यथा मैं तो तैयार ही बैठा हूँ । जड़ी बूटियां उसने भिजवाई थी यह बात मुझे पता चल चुकी थी । उसकी मर्जी के आगे मैं कैसे ना करता ? मैंने जड़ी बूटियां उबाल कर पीना शुरू किया । उसकी भेजी जड़ी बूटियां और चमत्कार न हो ? मेरे भ्राता मेरा डॉक्टर बड़े हैरान थे यह कैसे संभव है , पर मेरी मौजूदगी प्रमाण थी उसकी मर्जी का । उसने मुझे जाने नहीं दिया यहीं रोक लिया । आज ६ वर्ष हो गए हैं इस बात को ।
मैं जब पढता था कि संसार में सब कुछ किसी कारण से होता है कभी इससे दुःख होता है कभी इसे सहन करना मुश्किल होता है परंतु अंत में यह सब भले के लिए ही होता है । उस समय इस पर मनन करता था पर इसका वास्तविक अर्थ नहीं पता था । मुझे उसने इसका अहसास करवा दिया । इसका अहसास करवाने के लिए उसे यह सब करना पड़ा ।
पुराने जन्मों के भोग व्यक्ति को भोगने पड़ते है । जितनी जल्दी व्यक्ति भोग ले और नए संस्कार ना बनाये आद्यात्मिक मार्ग में उतनी अधिक उन्नति होती है ।
भीष्म पितामह शर-शैया पर पड़े थे , भगवान् श्री कृष्ण उनसे मिलने आये । पितामह ने पूछा हे भगवन मेने अपने पिछले सौ जन्म देखे हैं मैंने ऐसा कुछ नहीं किया जो यह मुझे भोगना पड़े , इस तरह शर शैया पर पड़े रहना पड़े । भगवान् ने कहा पितामह आपने अपने सौ जन्म देखे हैं , आप अपने सौ जन्म ही देख सकते हैं ज्यादा नहीं । मैं आपका १०१ वां पुराना जन्म देख रहा हूँ । अपने १०१ पुराने जन्म में आप एक राजा थे । एक बार आप एक जंगल से गुजर रहे थे । अपने अहम में चूर आपने अपने रास्ते में आये एक सांप को हाथ से पकड़कर घुमाकर फेंका । वह सांप एक कांटो वाली झाडी में जाकर फंस गया और ४० दिन कांटो पर पड़ा तड़पता रहा । सुनकर पितामह ने कृष्ण भगवान् को कहा आपने मेरा संशय दूर किया धन्यवाद ।
उसकी कहानी अभी ख़त्म नहीं हुई है अभी तो उसकी कहानी में और भी बहुत कुछ मोड़ बाकी हैं ।