एक गीत
आज मन कुछ क्षुब्ध सा है।
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बसंती पागल हवा ये,
नहा के परिमल मे आई।
लाल सेमल हो गये,
बौरा गई है आमराई ।
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आँख नम है, आँख मेँ टूटा कोई सपना धँसा है ।
आज मन……………………………
चाहता है मन दिवाना ,
चूम लूँ आकाश उड़कर।
हवाओं को अंक भर लूँ,
चमक लूँ चंदा से जुड़कर।
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मगर मेरे पाँव मे संसार ने रस्सा कसा है ।
आज मन कुछ क्षुब्ध ……………………..