कविता

फिर आ जाओ

किया था तुमने जब स्वीकार
लुटाकर सब भूॅलों पर प्यार,,
बिछी थी अधरों पर मुस्कान
ह्दय में उठा था तब मनुहार–!
कहाॅ हो फिर आ जाओ–?

टूटते स्वर को लिया था बाॅध
दी थी मेरे गीतों को एक तान,
जहाॅ को दिये थे मेरे बोल
बना दी जिसने एक पहचान,
कहाॅ हो फिर आ जाओ–?

भर दिये थे तुमने जज्बात
आलिंगन कर मेरे एहसास
ठहरे पानी में हो बरसात
कहीं न बीते ये मधुमास,
कहाॅ हो फिर आ जाओ–?

विरह व्यथा बढती दिनरात
प्राण कहते न अपनी बात
नैनों से हो निसदिन बरसात
करुणमय झुलस रहे जज्बात
कहाॅ हो फिर आ जाओ–?

 
नीरू “निराली”

नीरू श्रीवास्तव

शिक्षा-एम.ए.हिन्दी साहित्य,माॅस कम्यूनिकेशन डिप्लोमा साहित्यिक परिचय-स्वतन्त्र टिप्पणीकार,राज एक्सप्रेस समाचार पत्र भोपाल में प्रकाशित सम्पादकीय पृष्ट में प्रकाशित लेख,अग्रज्ञान समाचार पत्र,ज्ञान सबेरा समाचार पत्र शाॅहजहाॅपुर,इडियाॅ फास्ट न्यूज,हिनदुस्तान दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित कविताये एवं लेख। 9ए/8 विजय नगर कानपुर - 208005