“मेरी कविता”
मेरी कविता ने कहा
कहाँ गए वे शब्द
जिन्हें कभी तुम हरघड़ी
रटते थे वक्त वेवक्त॥
गूँज उठती थी हड़बड़ी
हाथ मेरे थे व्यस्थ
आकर पीछे से पकड़
कर देते थे धव्स्त॥
चींख उठते थे तवे हमारे
रोटी की झंकार अलग
दाल बेचारी छ्लक छलक कर
करती थी गुणगान अलग॥
शर्म हया की दुबिधा में
करवट लेती थी ललक पलक
कहाँ गए वे लटके झटके
कहाँ गयी प्रिय प्रखर कलम॥
महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी