गीतिका/ग़ज़ल

रात कोठों पर बिता कर देखिये

मैकदों के पास आकर देखिये ।
तिश्नगी थोड़ी बढ़ाकर देखिये ।।

वह नई उल्फ़त या नागन है कोई ।
गौर से चिलमन हटाकर देखिये ।।

सर फरोशी की तमन्ना है अगर ।
बेवफा से दिल लगाकर देखिये ।।

आपकी जुल्फें सवंर जायेगी खुद ।
आशिकों के पास जाकर देखिये ।

आस्तीनों में सपोले हैं छुपे ।
हाथ दुश्मन से मिलाकर देखिये ।।

जल न् जाऊं आपके इस इश्क़ में  ।

इस तरह मत मुस्कुरा कर देखिये ।।

होश  खोने  का  इरादा  है  अगर ।
ज़ाम साकी को पिलाकर देखिये ।।

दाग लग जाते हैं दामन पर यहां ।
कुछ तमाशा दूर जाकर देखिये ।।

फिर नशेमन पर गिरी हैं बिजलियाँ ।
बादलों को तिलमिलाकर देखिये ।।

हो रहा वह हुस्न भी नीलाम अब ।
बोलियां ऊंची लगाकर देखिये ।।

चाहते गर लाश जिन्दा देखना ।
रात कोठों पर बिताकर देखिये ।।

–नवीन मणि त्रिपठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक [email protected]