“दोहे”
गेहूं की ये बालियाँ, झुकती अपने आप
रे चिंगारी चेतना, अन्न जले बहु पाप॥-1
अपना पेट भरण किए, येन केन प्रकरेन
अगल बगल तक ले तनिक, भूखे कितने नैन॥-2
ज्वाला उठी लपट बढ़ी, धधक उठी है आग
तेरे घर इक चिंगारी, भाग सके तो भाग॥-3
खुशियों का खलिहान हैं, नाचें गाएँ लोग
सोने की डफली बजी, करतल ध्वनि सुयोग॥-4
मन की आग बुझा तनिक, खेतों के सरताज
नई फसल झूमन लगी, हाथ हाथ में साज॥-5
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी