हमसफ़र (लघु कथा)
संजय बहुत देर से सड़क किनारे खड़ा किसी सवारी गाड़ी या वाहन के आने इंतज़ार कर रहा था| जून की तपती दोपहर में इंसान तो क्या परिंदों के लिए भी निकलना मुश्किल था| ऐसे में इंतजार करना बड़ा ही दूभर हो रहा था| यहाँ कोई ऐसा पेड़ भी नहीं था जिसकी छाँव से ही कुछ राहत मिल जाती| एक्का दुक्का कोई मोटरसाईकल आयी भी तो किसी ने रुकने का साहस नहीं किया|
बहुत देर बाद के एक स्कूटर वाला आता दिखाई दिया| संजय ने उसे रुकने का इशारा किया| स्कूटर वाला भला इंसान मालूम होता था जो उसने स्कूटर रोक कर संजय को बिठा लिया| अभी कुछ दुरी ही तय हुई थी कि स्कूटर का टायर पंचर हो गया| स्कूटर का पंचर ठीक करवाना जरुरी था सो दोनों साथी स्कूटर को धक्का मारते हुए आगे बढे| इतनी भीषण गर्मी में स्वयं चलना दूभर था ऊपर से स्कूटर को धकेलना पड़ रहा था जिसके कारण थोड़ी ही देर में दोनों पसीने से नहा गए| अभी कुछ दुरी ही तय की थी कि पीछे से एक हॉर्न बजा| दोनों ने पीछे मुड़ कर देखा तो एक मोटरसाकिल वाला था|
मोटरसाईकल वाले ने कहा ‘लगता है आपका स्कूटर पंचर हो गया है| आओ एक को तो मैं आगे तक छोड़ देता हूँ| इस दोपहरी में दोनों तो परेशान नहीं होवोगे|’
संजय ने कहा ‘शुक्रिया भाई साहब! लेकिन हम दोनों भाई एक साथ ही पैदल चलने का आनंद लेना चाह रहे हैं|’
मोटरसाईकल वाला ‘आनन्द?’
संजय ‘हाँ आनंद| जब दो भाई साथ साथ चल रहे हों तो परम्आनंद आता है और हम इन आनंददायक क्षणों को खोना नहीं चाहते|’
यह सुन कर मोटरसाईकल वाला चला गया| उसके चले जाने के बाद
स्कूटर वाले ने कहा ‘आप तो जा सकते थे| आपकी कोई मज़बूरी भी नहीं थी|’
संजय बोला ‘कैसे चला जाता? मैं अकेला सुनसान जगह पर खड़ा दोपहरी में तप रहा था| तब बिना किसी भय, आशंका के अपने स्कूटर पर बैठाया| अब तो आप जैसे सज्जन पुरुष का साथ है| अपने सुख के चक्कर में मैं उस मोटरसाईकल वाले के साथ चला जाता तो मेरे लिए यह धिक्कार था| वक्त का तकाज़ा भी यही कहता है इस समय मुझे आपका साथ नहीं छोड़ना चाहिए|’
स्कूटर वाला ऊँगली से माथे का पसीना पोंछते हुए ‘चलो यार अब आप स्कूटर का हैंडल संभालो मैं धक्का मारता हूँ|’
— विजय ‘विभोर’