लघुकथा

परोपकार (लघु कथा)

‘सुनती हो!’

‘हाँ कहो!… क्या बात है?’
‘लगता है मेरी चप्पलें घिस गयी हैं| अभी-अभी बाथरूम में फिसलते-फिसलते बचा हूँ|’
‘शाम को अपने लिए नई चप्पलें लेते आना|’
‘लेकिन यह चप्पलें अभी नयी ही हैं, टूटी भी नहीं हैं|’
‘नीचे से घिस गयी होंगी, आप इन्हें नहीं पहनना कहीं फिसल-विसल गए तो टांग तुड़वा बैठोगे| खामखाँ पाँच छः महीने बिस्तर में पड़े रहोगे| कमाई तो होगी नहीं ऊपर से इलाज़ का खर्च और आन पड़ेगा|’
‘लेकिन इनका क्या करेंगे?’
‘किसी ग़रीब मज़दूर को दे दूंगी| पहन कर दुआ देगा|’
— विजय ‘विभोर’

विजय 'विभोर'

मूल नाम - विजय बाल्याण मोबाइल 9017121323, 9254121323 e-mail : [email protected]