गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

संग जितने पड़ें उतना ही सँवर जाते हैं
हम वो आईने नहीं हैं जो बिखर जाते हैं

सारे मंज़र जो ख्यालों में ठहर जाते हैं
शाम ढलते ही निगाहों से गुज़र जाते हैं

देखता मैं भी उधर जा के, जिधर जाते हैं
रोज़-के-रोज़ कहाँ शम्स-ओ-क़मर जाते हैं

इश्क़ के दश्त में हो जाता है दरिया का भरम
इसी ग़फ़लत में कई लोग उधर जाते हैं

हिज्र में होती है जलने की चराग़-ए-उम्मीद
लोग बस वस्ल का ही सोच के डर जाते हैं

जब पहुँचना ही नहीं ज़ीस्त की मंज़िल पे कहीं
चलो ऐसा करें, गाड़ी से उतर जाते हैं

रात तो काट ही लेते हैं मेरे साथ, मगर
सुब्ह दम चाँद-सितारे ये किधर जाते हैं?

तैरते रहते हैं सदियों तलक उनके ही नाम
दरिया-ए-इश्क़ में जो डूब के मर जाते हैं

जयनित कुमार मेहता

पिता- श्री मनोज कुमार मेहता जन्मतिथि- 06/11/1994 शिक्षा:बी.एन. मंडल विश्वविद्यालय,मधेपुरा(बिहार) से राजनीति शास्त्र में स्नातक (अध्ययनरत) रूचि: साहित्य में गहन रूचि। कविता,गीत, ग़ज़ल लेखन.. फेसबुक पर निरंतर लेखन व ब्लॉगिंग में सक्रिय! प्रकाशित कृतिया: एक साझा काव्य संग्रह 'काव्य-सुगंध' शीघ्र (जनवरी 2016 तक) प्रकाश्य!! पता: ग्राम-लालमोहन नगर,पोस्ट-पहसरा, थाना-रानीगंज, अररिया, बिहार-854312 संपर्क:- मो- 09199869986 ईमेल- [email protected] फेसबुक- facebook.com/jaynitkumar